पूरी दुनिया सोच रही थी कि अमेरिका और उनके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चीन को घुटनों पर लेकर आएंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. ड्रैगन घुटनों पर आया तो है, लेकिन ये काम भारत ने किया है. टैरिफ वॉर का फायदा उठाते हुए चीन की कंपनियों को भारत में निवेश के लिए उन तमाम शर्तों को मानने के लिए मना लिया है, जिसके लिए चीनी कंपनियां काफी दिनों से आनाकानी कर रही थी. मामले की जानकारी रखने वाले लोगों ने बताया कि शंघाई हाइली ग्रुप और हायर उन चीनी कंपनियों में आ गई हैं, जो भारत में एक्सपेंशन के लिए भारत सरकार के नियम और शर्तों को मानने के लिए तैयार हो गई हैं. जिसमें प्रमुख शर्त ज्वाइंट वेंचर्स में अल्पमत हिस्सेदारी बनाए रखना शामिल है. जिसके लिए चीनी कंपनियां पहले तैयार नहीं थी, लेकिन अमेरिका के बढ़ते टैरिफ के बीच उन्हें ऐसा करने के लिए राजी किया गया है.
पीएलआई स्कीम से मदद मिली
एक अन्य बड़ी कंपनी हायर, जो सेल्स के मामले में भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स मार्केट में तीसरे स्थान पर है, ने अपने लोकल ऑपरेशन में मैज्योरिटी स्टेक बेचने पर सहमति जताई है; मीडिया रिपोर्ट में भगवती प्रोडक्ट्स, एक टेलीकॉम और इलेक्ट्रॉनिक्स कांट्रैक्ट मेकर के डायरेक्टर राजेश अग्रवाल ने कहा कि चीनी कंपनियों के रवैये में पूरी तरह से बदलाव आया है, जो अब भारतीय ज्वाइंट वेंचर में माइनोरिटी स्टेक रखने या तकनीकी गठबंधन बनाने में बेहद सहज हैं.
ड्रैगन की स्थिति कमजोर
उद्योग से जुड़े जानकारों की मानें तो ट्रंप के टैरिफ के कारण अमेरिका में चीन के उत्पाद काफी महंगे हो जाएंगे, इसलिए चीनी कंपनियां भारत में ग्रोथ को धीमा पड़ने नहीं देना चाहती है और वे सरकार की तमाम शर्तों को मानने के लिए राजी हो गई हैं. सरकार ने संकेत दिया है कि वह चीनी कंपनियों के साथ ज्वाइंट वेंचर्स को मंजूरी देगी, यदि उनके पास माइनोरिटी स्टेक है, बोर्ड प्रमुख रूप से भारतीय है और वेंचर वैल्यू एडिशन प्रदान करता है या स्थानीय प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए आवश्यक नई तकनीक लाता है.
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