अरावली पर्वत श्रृंखला दुनिया के सबसे पुराने पर्वतों में से एक है, जिसका निर्माण लगभग 2.5 अरब वर्ष पहले हुआ था। लेकिन तेजी से बढ़ती मानव गतिविधियों के कारण यह प्राकृतिक धरोहर आज गंभीर संकट के दौर से गुजर रही है। शोधकर्ताओं ने आगाह किया है कि यदि यह रफ्तार जारी रही तो वर्ष 2059 तक अरावली क्षेत्र के लगभग 16,360 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र पूरी तरह खत्म हो सकते हैं।
शोध में उजागर हुआ बड़ा खतरा
राजस्थान के केंद्रीय विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग द्वारा किए गए अध्ययन में 1975 से 2019 तक के 44 वर्षों के सैटेलाइट डेटा और मशीन लर्निंग मॉडल का विश्लेषण किया गया। नतीजों के अनुसार, इस अवधि में अरावली क्षेत्र का 5,772 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र खत्म हो चुका है, जबकि 3,676 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र बंजर भूमि में बदल गया और 777 वर्ग किलोमीटर पर मानव बस्तियां बस गईं। यानी अरावली की जैव-विविधता और पारिस्थितिकी पर लगातार दबाव बढ़ रहा है।
उत्तर-पश्चिम भारत की ‘पर्यावरण रीढ़’ कमजोर
शोधकर्ताओं का मानना है कि यदि यह रुझान नहीं बदला तो अरावली श्रृंखला की स्थिति और गंभीर हो सकती है। यह पर्वतमाला उत्तर-पश्चिम भारत की पर्यावरणीय सुरक्षा कवच मानी जाती है—यह धूल-भरी आंधियों को नियंत्रित करती है, भूजल recharge में मदद करती है और जलवायु संतुलन बनाए रखती है। ऐसे में अरावली का कमजोर होना पूरे क्षेत्र के लिए खतरे की घंटी है।
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