


बिहार में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर सियासी घमासान मच गया है। निर्वाचन आयोग द्वारा 24 जून 2025 को शुरू की गई इस प्रक्रिया ने विपक्षी दलों को आक्रामक रुख अपनाने के लिए मजबूर कर दिया है। विपक्ष का आरोप है कि यह कवायद गरीबों, दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों को मताधिकार से वंचित करने की साजिश है। विपक्ष ने इसे वोटबंदी का नाम दिया।
चुनाव आयोग से मिला 11 पार्टियों का डेलिगेशन
विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर कांग्रेस, राजद, सपा, सीपीआई समेत 11 विपक्षी दलों ने ईसीआई कार्यालय पहुंचकर आपत्ति जताई। साथ ही विपक्ष ने इसे चुनावी समानता के अधिकार का उल्लंघन भी बताया है।
मतदाताओं की जांच करना असंभव-कांग्रेस
कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि बिहार में करीब 7.75 करोड़ वोटर है और इतनी बड़ी संख्या की कुछ महीनों में जांच करना असंभव है। पिछली बार यह प्रक्रिया 2003 में हुई थी, तब लोकसभा चुनाव में एक साल बाद और विधानसभा चुनाव दो साल बाद थे। लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव सिर पर है।
तेजस्वी यादव ने भी उठाए सवाल
राजद नेता तेजस्वी यादव ने इसे लोकतंत्र को कमजोर करने की कोशश करने का आरोप लगाया है। राजद नेता ने इसको लेकर सोसल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट किया है। राजद नेता ने एक्स पर लिखा- बिहार चुनाव से पहले चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन की क़वायद ना केवल संदेहास्पद बल्कि लोकतंत्र की नींव पर सीधा हमला है। यह गरीबों के वोट काटने की गहरी साजिश है।