


धरती के भीतर क्या चल रहा है, यह सवाल वैज्ञानिकों के लिए अब भी एक रहस्य बना हुआ है. लेकिन हाल ही में किए गए एक शोध से पता चला है कि पृथ्वी का अंदरूनी कोर पिछले 20 सालों में अपनी शक्ल बदल चुका है. यह बदलाव सतह से करीब 4,000 मील नीचे हुआ है, जहां ठोस कोर और तरल बाहरी कोर की सीमा मिलती है. वैज्ञानिकों का मानना है कि यह बदलाव पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र और उसके भविष्य को समझने में अहम साबित हो सकता है.
पृथ्वी की संरचना चार प्रमुख परतों में बंटी होती है—सबसे अंदर सॉलिड इनर कोर होती है जो लोहे और निकेल से बनी होती है; इसके बाहर द्रव रूप में आउटर कोर, जो पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र पैदा करती है; फिर आता है गाढ़ा मेंटल, जहां संवहन धाराएं प्लेट टेक्टोनिक्स को संचालित करती हैं; और सबसे ऊपर पतली, ठोस क्रस्ट, जहां जीवन पनपता है और भूगर्भीय गतिविधियां होती हैं.
कैसे बदला धरती के कोर का आकार?
आमतौर पर, पृथ्वी के अंदरूनी कोर को एक ठोस गोले के रूप में देखा जाता है, लेकिन नए अध्ययन के मुताबिक, इसकी सतह कुछ जगहों पर 100 मीटर या उससे ज्यादा विकृत हो चुकी है. यह बदलाव उस बिंदु पर हो सकता है जहां अंदरूनी ठोस कोर, बाहरी तरल कोर से मिलता है.
धरती के चुंबकीय कवच से जुड़ा रहस्य!
धरती का कोर किसी धड़कते हुए दिल की तरह काम करता है, जो हमारे ग्रह का चुंबकीय क्षेत्र बनाता है. यही चुंबकीय क्षेत्र सूर्य की खतरनाक विकिरणों से हमें बचाता है.
अगर पृथ्वी का कोर ठंडा होकर पूरी तरह ठोस हो जाए, तो इसका चुंबकीय क्षेत्र खत्म हो सकता है. वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसा होने में अभी अरबों साल लगेंगे, लेकिन तब तक पृथ्वी शायद सूर्य द्वारा निगल ली जाएगी.
भूकंप के झटकों से मिला संकेत
धरती के कोर तक पहुंचना अभी तक संभव नहीं हो पाया है, लेकिन वैज्ञानिक इसके रहस्यों को समझने के लिए भूकंप से निकलने वाली तरंगों का अध्ययन करते हैं. इस नए अध्ययन में 1991 से 2023 के बीच आए उन भूकंपों की तरंगों का विश्लेषण किया गया जो एक ही स्थान पर बार-बार दोहराए गए थे. इन तरंगों की गति और दिशा से वैज्ञानिकों को पता चला कि कोर का आकार समय के साथ बदल रहा है.
क्या धरती का कोर रुक सकता है?
कुछ समय पहले यह दावा किया गया था कि पृथ्वी का अंदरूनी कोर घूमना बंद हो सकता है. हालांकि, यह अध्ययन पृथ्वी के अंदर हो रही गतिविधियों की एक नई झलक देता है और हमें यह समझने में मदद करता है कि हमारा ग्रह कैसे काम करता है. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस शोध से पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र और उसके दीर्घकालिक प्रभावों को समझने में मदद मिलेगी.