


सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि "सिर्फ आधार कार्ड को नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जा सकता।" कोर्ट ने यह टिप्पणी बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया पर सुनवाई के दौरान की।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाला बागची की पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त दस्तावेजों के साथ आधार को पहचान के रूप में स्वीकार किया जा सकता है, लेकिन "नागरिकता साबित करने के लिए केवल आधार पर्याप्त नहीं है।"
क्या है पूरा मामला?
बिहार में चुनाव आयोग ने बड़ी कार्रवाई करते हुए मतदाता सूची से लगभग 65 लाख लोगों के नाम हटा दिए हैं। आयोग का तर्क था कि इन लोगों ने नागरिकता साबित करने के लिए सिर्फ आधार कार्ड प्रस्तुत किया था, जिसे आयोग ने पर्याप्त नहीं माना। इस फैसले के खिलाफ राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने पार्टी की ओर से पक्ष रखा।
पुट्टास्वामी केस का संदर्भ
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि 2018 के ‘पुट्टास्वामी बनाम भारत सरकार’ केस में पांच जजों की बेंच ने पहले ही यह निर्णय दिया था कि - आधार अधिनियम की धारा 9 के तहत, आधार कार्ड किसी भी व्यक्ति की नागरिकता का प्रमाण नहीं है। कोर्ट ने कहा कि उस फैसले के दायरे से बाहर जाकर हम कुछ नहीं कह सकते। आधार का इस्तेमाल केवल पहचान के लिए और आधार अधिनियम के दायरे में ही किया जाना चाहिए।
यह फैसला न सिर्फ आधार कार्ड की सीमाओं को स्पष्ट करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि भारत में नागरिकता जैसे संवेदनशील विषय पर कानूनी दृष्टिकोण कितना अहम है। साथ ही, यह चुनाव आयोग की प्रक्रियाओं और उसकी वैधता को भी सवालों के घेरे में लाता है।