जन्माष्टमी के चार दिन बाद यानी भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को बछ बारस का त्योहार मनाया जाता है। यह व्रत कार्तिक, माघ, वैशाख और सावन माह की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को मनाया जाता है। महिलाएं इस व्रत को अपने बच्चों की लंबी आयु के लिए करती हैं। इस दिन माताएं अपने पुत्रों को तिलक लगाकर तलाई फोड़ने के बाद लड्डू का प्रसाद देती हैं।
तिथि और मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि 29 अगस्त, गुरुवार की रात 01 बजकर 37 मिनट से शुरू होगी, जो अगले दिन यानी 30 अगस्त, शुक्रवार की रात 02 बजकर 25 मिनट तक रहेगी। इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 07:46 से शाम 05:08 से 06:42 तक रहेगा।
पूजा सामग्री और विधि
बछ बारस की पूजा के लिए भैंस का दूध और दही , भीगा हुआ चना और मोठ लें। मोठ-बाजरे में घी और चीनी मिलाएं। उसके बाद गाय के रोली का टीका लगाकर चावल के स्थान पर बाजरा लगाएं। बयाना के लिए एक कटोरी में भीगा हुआ चना , मोठ ,बाजरा और दक्षिणा रखे। इस दिन सुबह स्नान कर साफ सुथरे वस्त्र धारण कर लें। फिर दूध देने वाली गाय के साथ बछड़े को स्नान कराएं। फिर गाय को नए वस्त्र चढ़ाते हुए फूल माला अर्पित करें। गौ माता के पैरों में लगी मिट्टी से अपने माथे पर तिलक लगाएं। पूजा पूरी होने के बाद गाय को उड़द दाल से बना भोजन कराएं। पूजा करने के बाद बछ बारस की कथा सुने। इसके बाद सास के पैर छूकर बायना यानी मोठ और बाजरे के दाने के साथ दक्षिणा रखकर दें।
बछ बारस महत्व
बछ बारस के दिन गायों की सेवा करने से महान कार्यों को करने जितना पुण्य मिलता है। भविष्य पुराण के अनुसार, जो व्यक्ति गोवत्स द्वादशी के दिन गाय के बछड़े की पूजा करता है और उपवास करता है, वह सभी सुखों का आनंद लेता है और गाय के शरीर के पर जितने बाल है, उतने समय तक गालुक में रहता है। श्रीकृष्ण की कृपा से उन्हें संतान सुख, समृद्धि और उन्नति का आशीर्वाद मिलता है। इस दिन घरों में बाजरे की रोटी और अंकुरित अनाज की सब्जी बनाई जाती है।
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