विश्वकर्मा पूजा की तिथि
विश्वकर्मा पूजा की बात करें तो भाद्रपद महीने में सूर्य जब कन्या राशि से निकलता है और सिंह राशि में प्रवेश कर जाता है तो ऐसे में विश्वकर्मा पूजा मनाई जाती है। साल 2024 की बात करें तो इस साल सूर्य, 16 सितंबर को शाम के वक्त 7 बजकर 29 मिनट पर कन्या राशि में प्रवेश करेंगे। ऐसे में विश्वकर्मा जयंती 17 सितंबर के दिन मनाई जाएगी।पूजा के शुभ मुहूर्त
भद्रा काल लगने की वजह से इस साल विश्वकर्मा पूजा के लिए सीमित समय सीमा रहेगी। दोपहर को भद्रा काल लग रहा है। कहा जाता है कि भद्राकाल के दौरान पूजा नहीं करनी चाहिए। इससे नकारात्मकता बढ़ती है। 17 सितंबर को आप सुबह 06 बजकर 07 मिनट से लेकर 11 बजकर 43 मिनट तक विश्वकर्मा पूजा कर सकते हैं। तो इस लिहाज से साल 2024 में विश्वकर्मा पूजा का शुभ मुहूर्त कुल 5 घंटे 36 मिनट का होगा। इसी दौरान ईश्वर की पूजा का लाभ प्राप्त होगा।विश्वकर्मा पूजन विधि-
इस दिन अपनी मशीनों और औजारों की साफ सफाई जरूर करें। हो सके तो इस दिन मशीनों को आराम दें।
इसके बाद स्नान कर पूजा स्थान पर बैठ जाएं।
अगर आप विवाहित हैं तो ये पूजा अपनी पत्नी संग करें।
इसके बाद हाथ में फूल लेकर भगवान विष्णु जी का ध्यान करें और फिर ये फूल विष्णु भगवान की प्रतिमा पर चढ़ा दें।
ये पूजा फैक्टरी, वर्कशॉप या ऑफिस में की जानी चाहिए।
विश्वकर्मा जी की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त सुबह में ही होता है, इसलिए कोशिश करें कि सुबह में ही स्नान-ध्यान करके ये पूजा संपन्न कर लें।
पूजा के लिए सभी जरूरी सामग्री एकत्रित कर लें। इस सामग्री में भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति या तस्वीर, जल से भरा कलश, थोड़े अक्षत, फूल, माला, चंदन, धूप, पीली सरसों, सुपारी, फल और प्रसाद आदि जरूर होना चाहिए।
फिर हाथ में फूल और थोड़े अक्षत लेकर भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करते हुए इस मन्त्र का उच्चारण करें, “ऊं आधार शक्तपे नमः ऊं कूमयि नमः ऊं अनंतम नमः ऊं पृथिव्यै नमः ऊं श्री सृष्टतनया सर्वसिद्धया विश्वकर्माया नमो नमः।”
मंत्र पढ़ने के बाद अपने हाथ में लिए गए अक्षत को भगवान को समर्पित कर दें।
इसके बाद पीली सरसों को चार पोटलियों में बांधकर चारों दिशाओं के द्वार पर उन्हें बांध दें।
इसके बाद अपने और पूजा में उपस्थित हुए लोगों के हाथ में मोली बांधें।
संभव हो तो ये पूजा किसी योग्य ब्राह्मण से कराएं ताकि किसी प्रकार की गलती न हो।
फिर जमीन पर आठ पंखुड़ियों वाला कमल बनाएं और उस पर पुष्प चढ़ा दें।
अंत में भगवान विश्वकर्मा की आरती करें और सभी में प्रसाद बांटे।
अगले दिन विश्वकर्मा जी की प्रतिमा का विसर्जन कर दें।
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