भारत को मंदिरों और ऋषियों की तपोस्थली कहा जाता है. यहां बहुत से रहस्यमयी और अनोखे मंदिर स्थित हैं. इन सभी मंदिरों की अपनी एक खास विशेषताएं हैं. इन मंदिरों से जुड़ी रोचक बातें हर किसी को हैरान कर देती हैं. यहां एक मंदिर अपने चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध हैं वहीं इसका वैज्ञानिक आधार भी काफी मजबूत माना जाता है. कहा जाता है कि बिना छत के इस मंदिर में कभी ऋषि मार्कंडेय ने तपस्या की थी.
कहां है यह मंदिर?
देवभूमि हिमाचल के कई मंदिर आज भी कई रहस्यों से भरे पड़े है. जिन रहस्यों को आज तक कोई नहीं सुलझा पाया हैं. ऐसा ही एक धार्मिक स्थल मंडी जिले में भी स्थित है. जंजैहली से 16 किलोमीटर दूर शिकारी देवी मंदिर एक ऐसा मंदिर है. जिस पर आज तक कोई छत नहीं बनाई गई है. मान्यता है कि मार्कंडेय ऋषि ने इस जगह पर कई साल तपस्या की थी. उनकी तपस्या से खुश होकर मां दुर्गा अपने शक्ति रूप में इस जगह पर स्थापित हुई थी.
विराजमान हैं 64 योगिनियां
बिना छत के इस मंदिर मे एक साथ 64 योगिनियां विराजमान हैं. इसलिए शिकारी माता को ‘योगिनी माता’ भी कहा जाता है. माता की नवदुर्गा मूर्ति, चामुंडा, कमरूनाग मंदिर मंडी और परशुराम की मूर्तियां भी यहां स्थापित की गई हैं.
कभी नहीं टिकती छत
इस प्राचीन मंदिर के ऊपर छत का टिकना अपने आप में एक रहस्य बना हुआ है. कहा जाता है कि इस मंदिर के ऊपर कई बार छत बनवाने का काम शुरू किया गया. लेकिन इस मंदिर की छत बनवाने की कोशिश हमेशा ही नाकाम रही. इस मंदिर की दीवारों पर कभी भी छत ठहर ही नहीं पाई. कहा जाता है कि यहां माता रानी खुले आसमान के नीचे रहना पसंद करती हैं. छत डालकर मंदिर के भीतर रहना पसंद नहीं करतीं.
नहीं टिकती बर्फ
शिकारी शिखर की पहाड़ियों पर हर साल सर्दियों में कई फीट तक स्नोफॉल होता है. मंदिर के प्रांगण में भी कई फीट तक बर्फ गिर जाती है, लेकिन छत न होने के बाद भी माता की मूर्ति पर ना बर्फ टिकती है और ना ही जमती है.
पांडवों ने की थी तपस्या
मार्कंडेय ऋषि के बाद अज्ञातवास के दौरान यहां पांडवों ने भी तपस्या की. पांडवों की तपस्या से खुश होकर मां दुर्गा प्रकट हुई और पांडवों को युद्ध में जीत का आशीर्वाद दिया. उसी समय पांडवों ने मंदिर का निर्माण करवाया, लेकिन किसी कारण इस मंदिर का निर्माण पूरा नहीं हो सका और पांडव यहां पर मां की पत्थर की मूर्ति स्थापित करने के बाद चले गए थे.
Comments (0)