हरियाली तीज पर महिलाओं द्वारा सोलह श्रृंगार करने की परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। यह परंपरा धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। सोलह श्रृंगार का महत्व हिंदू धर्म की मान्यताओं में गहराई से निहित है। हरियाली तीज को देवी पार्वती और भगवान शिव के पुनर्मिलन के रूप में मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन माता पार्वती ने कठोर तपस्या के बाद भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया थाइ। स खुशी के अवसर पर महिलाओं द्वारा सोलह श्रृंगार करने की परंपरा शुरू हुई।
सोलह श्रृंगार
सोलह श्रृंगार में सिंदूर, बिंदी, मेहंदी, चूड़ियां, काजल, नथ, हार, कानों के झुमके, बाजूबंद, अंगूठी, पायल, बिछुए, कंघी, इत्र, गजरा और कमरबंद शामिल होते हैं. यह श्रृंगार न केवल महिलाओं की सुंदरता को बढ़ाता है, बल्कि उनके वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि का प्रतीक भी माना जाता है।
क्या है वैज्ञानिक आधार
धार्मिक मान्यताओं के अलावा सोलह श्रृंगार के वैज्ञानिक आधार भी हैं। हरियाली तीज के दौरान किए जाने वाले सोलह श्रृंगार का महिलाओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
सिंदूर और बिंदी
सिंदूर और बिंदी लगाने से मस्तिष्क में ठंडक का अनुभव होता है और यह मानसिक तनाव को कम करने में सहायक होता है।
मेहंदी
मेहंदी में एंटीसेप्टिक गुण होते हैं जो त्वचा को स्वस्थ रखते हैं और गर्मी के दौरान शरीर को ठंडा रखते हैं।
चूड़ियां और बिछुए
चूड़ियां और बिछुए पहनने से रक्त संचार बेहतर होता है, जिससे महिलाओं को एनर्जी मिलती है।
काजल
काजल आंखों को ठंडक पहुंचाता है और उन्हें धूल और धुएं से बचाता है।
इत्र और गजरा
इत्र और गजरे की खुशबू मानसिक शांति प्रदान करती है और मूड को बेहतर बनाती है।
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