भगवान विष्णु को सृष्टि का कर्ताधर्ता माना जाता है। उन्होंने दुनिया का बचाने के लिए 10 अवतार लिए। पौराणिक कथाओं के अनुसार, उन्होंने पृथ्वी पर बालि के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए पांचवां अवतार लिया था। इसे वामन अवतार कहा गया, जिसकी विधि विधान से पूजा की जाती है। उनके जन्म को वामन जयंती के रूप में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मनाया जाता है। वहीं इस बार यह पर्व 15 सितंबर रविवार को मनाया जा रहा है। द्वादशी तिथि को मनाए जाने के कारण इसे वामन द्वादशी भी कहते हैं।
महत्व
विष्णु जी के इन 10 अवतारों में वामन अवतार को बड़ा ही खास माना जाता है। वामन को ऐसा पहला अवतार कहा जाता है जिसमें विष्णु जी मानव रूप में प्रकट हुए थे। भगवान वामन को इन्द्र जी का छोटा भाई भी बताया गया है। इस दिन समस्त वैष्णव भक्तों को इस दिन उपवास करना चाहिए। प्रात: काल स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद व्रत करने का संकल्प लेना चाहिए। इस दिन अभिजीत मुहूर्त में वामन भगवान का पूजन करना चाहिए। इस दिन एक पात्र में चावल, दही और चीनी रखकर किसी वेद पाठी ब्राह्मण को दान करना चाहिए। वहीं सायं काल पुनः स्नान करने के उपरांत भगवान वामन का पूजन करना चाहिए। पूजा के समय व्रत कथा भी सुननी चाहिए। इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए। स्वयं फलाहार करना चाहिए।
मान्यता
पुराणों में ऐसा कहा गया है कि भक्तों को वामन जयंती के दिन व्रत रखना चाहिए। इस दिन भगवान वामन की स्वर्ण प्रतिमा बनवाकर पंचोपचार सहित उनकी पूजा करनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि जो भक्ति श्रद्धा-भक्तिपूर्वक इस दिन भगवान वामन की पूजा करते हैं, उनके जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। कहते हैं कि यदि आपको वामन जी की प्रतिमा या तस्वीर ना मिले तो आप विष्णु जी की पूजा-अर्चना भी कर सकते हैं। हालांकि वामन जयंती पर भगवान ‘वामन’ की पूजा करना ही बेहतर है। कहा जाता है कि वामन जयंती पर व्रत रखने से व्यक्ति को उसके शत्रुओं पर बढ़त मिलती है।
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