हिन्दू धर्म में भगवान शिव का व्यक्तित्व बहुत गहरा और प्रतीकात्मक है। उन्हें आमतौर पर एक सन्यासी, योगी, तपस्वी और वैरागी की तरह देखा जाता है, जबकि एक सन्यासी के स्वभाव के उलट उनका एक भरा-पूरा परिवार है। उनका यह परिवार एक सामान्य परिवार की तरह है, जबकि अन्य देवताओं को देखा जाए, तो उनके पास या तो पत्नियां हैं या फिर सिर्फ बच्चे। शायद ही किसी देवता का परिवार है और अगर है भी तो इतना सामान्य नहीं जितना भगवान शिव का है। इसके अलावा भगवान भगवान शिव को आदर्श पति भी माना जाता है और अविवाहित महिलाओं को उपयुक्त जीवनसाथी पाने के लिए शिव की पूजा करने के लिए कहा जाता है। शिव जी अपनी पत्नी के बिना अधूरे माने जाते हैं। उनका अर्धनारीश्वर स्वरूप इसी बात का प्रतीक है। तो इस बात को देखा जा सकता है कि शिवजी केवल विवाहित नहीं है, बल्कि एक आदर्श विवाहित पारिवारिक व्यक्तित्व के स्वामी हैं। क्या एक तपस्वी के लिए ऐसा संभव है? इसके पीछे आखिर क्या रहस्य या सन्देश है।
व्याख्याओं की अगर माने, तो भगवान शिव के परिवार का होना उनकी व्यापकता, संतुलन और हर पहलू को अपनाने की प्रवृत्ति को दर्शाता है। भगवान शिव सृष्टि के तीन मुख्य पहलुओं सृजन, पालन और संहार में "संहार" का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन उनका परिवार इन तीनों का संतुलन दर्शाता है। माता पार्वती सृजन का, गणेश जी और कार्तिकेय जी पालन का और स्वयं शिव संहार का प्रतीक हैं। शिव जी का परिवार इस बात का प्रतीक है कि सांसारिक जिम्मेदारियों और आध्यात्मिकता के बीच संतुलन संभव है। वे दिखाते हैं कि आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति परिवार और समाज से अलग हुए बिना भी आत्म-साक्षात्कारप्राप्त कर सकता है। एक व्यक्ति सांसारिक जीवन जीते हुए भी ध्यान, भक्ति और मोक्ष की ओर बढ़ सकता है।
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