Antarctica: अंटार्कटिका में स्थित थवाइट्स ग्लेशियर, जिसे डूम्सडे ग्लेशियर (Doomsday Glacier) भी कहा जाता है, एक नई मुसीबत खड़ी कर सकता है। बता दें कि ग्लेशियर के तेजी से पिघलने की बात सामने आई है। एक नए अध्ययन के अनुसार शोधकर्ताओं की दो टीमों ने एक अंडरवाटर रोबोट का इस्तेमाल कर पता लगाया है कि फ्लोरिडा के आकार जितने इस ग्लेशियर के पिघलने की स्पीड काफी तेज है। 13 फुट के पेंसिल के आकार के रोबोट आइसफिन ने ग्लेशियर के पिघलने के कारण का पता लगाया है।
समुद्र में बन सकता है खतरा
इंटरनेशनल थ्वाइट्स ग्लेशियर सहयोग के शोधकर्ताओं ने पाया कि जहां पूरे ग्लेशियर के पिघलने की गति अपेक्षा से धीमी है, वहीं दरारों और अन्य कमजोर क्षेत्रों में बर्फ का पिघलना कहीं अधिक तेजी से जारी है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसके पिघलने से समुद्र के स्तर में विनाशकारी वृद्धि हो सकती है।
बर्फ के बीच बनी दरारों के पिघलनी के स्पीड तेज
डूम्सडे ग्लेशियर (Doomsday Glacier) के पिघलने का आकलन करने के लिए वैज्ञानिकों के एक समूह के साथ कॉर्नेल विश्वविद्यालय के डॉ ब्रिटनी श्मिट द्वारा आइसफिन नामक रोबोट को बर्फ में ड्रिल किए गए 600 मीटर गहरे छेद के माध्यम से ग्लेशियर में उतारा गया। शोधकर्ताओं के अनुसार आइसफिन द्वारा की गई खोजों ने बर्फ के पिघलने के तरीके को साफ कर दिया। उन्होंने पाया कि बर्फ के बीच में दरारें जल्दी से पिघल रही हैं।
रोबोट ने क्लीक की तस्वीरें
पेंसिल जितने रोबोट के माध्यम से शोधकर्ताओं ने पाया कि ग्लेशियर पिघलकर पतला होकर नहीं, बल्कि टूटकर बिखर रहा है। शोध में पता चला कि ग्लेशियर के नीचे दरारों में बर्फ तेजी से पिघल रही है। यह इसलिए भी खतरनाक है क्योंकि दरारों में तेजी से पानी जा रहा है और यह नीचे हो रही प्रक्रिया के कारणवश हो सकता है। ग्लेशियर के नीचे गर्म पानी के बुलबुले बनने से बर्फ तेजी से टूटकर बिखर रही है।
कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता और आइसफिन टीम के सदस्य ब्रिटनी श्मिट ने कहा आगे कहा कि ग्लेशियर को देखने के ये नए तरीके हमें यह समझने की अनुमति देते हैं कि यह कितना पिघल रहा है। उन्होंने कहा कि इससे यह भी पता लगाया जा सकता है कि अंटार्कटिका के इन बेहद गर्म हिस्सों में यह कैसे और कहां हो रहा है।
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