अंतरिक्ष यात्रा को लेकर रोज नई बातें सामने आ रही है। मंगल पर 2050 तक कॉलोनी बनाने की योजना बनाई जा रही है। स्पेस टूरिज्म तक होने लगा है। आप भी पैसे देकर अंतरिक्ष यात्रा कर सकते है। लेकिन स्पेस की यात्रा इतनी आसान नही है। अंतरिक्ष यात्रा के बाद अमेरिकी एस्ट्रोनॉट डोनॉल्ड पेटिट ने बताया कि उन्हें आंखें बंद करते ही परियां दिखाई देती हैं और जागने पर अजीबोगरीब रोशनी या आवाज सुनाई देती है। आपको बता दें कि ये अकेले शख्स नहीं है जिन्होंने यह शिकायत की है। इसे समझने के लिए कई प्रयोग हुए, जिन्होंने बताया कि अंतरिक्ष यात्रा आपके ब्रेन को हमेशा के लिए बदल देती है। यहां तक कि DNA भी पहले जैसा नहीं रहता।
12 एस्ट्रोनॉट्स पर की गई स्टडी
अंतरिक्ष में हुए दिमाग पर असर को समझने के लिए कई सारी स्टडीज लगातार हो रही है। एक ऐसी ही स्टडी अमेरिका में की गई। स्टडी में ऐसे 12 एस्ट्रोनॉट्स को लिया गया, जो स्पेस पर 6 महीने से ज्यादा बिताकर लौटे थे। स्पेस पर जाने से पहले उनका ब्रेन इमेजिंग हुई और फिर इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से लौटकर धरती पर फ्लाइट लेने से पहले उनका MRI हुआ। 10 दिन बार ये दोबारा हुआ। ये प्रक्रिया लगातार 7 महीनों तक चलती रही।
क्या है वजह
स्पेस की एक्सट्रीम कंडीशन्स के कारण दिमाग अलग तरह से व्यवहार करने लगता है। जैसे वहां शरीर का भार खत्म हो जाता है। इस पर कंट्रोल के लिए ब्रेन अलग संकेत देता है, जो एक या दो दिन नहीं, कई महीनों तक चलता है। ब्रेन की री-वायरिंग के लिए इतना समय काफी है। अंतरिक्ष में हर समय बहुत खतरनाक रेडिएशन निकलती रहती हैं। इससे वहां का तापमान एक्सट्रीम पर रहता है, जो कभी +300 डिग्री फैरनहाइट भी हो सकता है तो कभी +300 डिग्री फैरनहाइट भी हो सकता है तो कभी -200 भी. इंसानी शरीर पर काफि गहरा प्रभाव करता है।
ये भी पढ़े- विदेश जाने के लिए नहीं पड़ेगी पासपोर्ट की जरूरत, आधार कार्ड से करें यात्रा
क्या बदलाव होते है ?
धरती पर लौटने के बाद ऐसे स्पेस ट्रैवलर चलने, बैलेंस बनाने में मुश्किल झेलते हैं। मोटर के साथ-साथ उनकी कॉग्निटिव स्किल पर भी असर होता है। पाया गया कि ज्यादातर यात्री लंबे समय तक बोलने और लोगों से मिलने-जुलने में दिक्कत झेलते रहे। यहां तक कि लगभग सभी की आंखें काफी कमजोर हो गईं। आपको बता दें कि नासा का स्पेस शटल प्रोग्राम लगातार रिसर्च कर रहा है। इसमें पाया गया कि स्पेस से हल्की रेडिएशन भी DNA में बदलाव ला देती है, जिससे कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का डर बढ़ जाता है। विकिरणों से न्यूरोजेनेसिस की प्रक्रिया में रुकावट आती है। इससे दिमाग में नई कोशिकाएं बननी बंद हो जाती हैं, जिससे याददाश्त जाने से लेकर न्यूरोसाइकेट्रिक बीमारियां की आशंका बढ़ जाती है।
Comments (0)