2025 के दौरान भारत में खाद्य वस्तुओं की कीमतों में स्पष्ट नरमी देखने को मिली। इससे खुदरा महंगाई दर भारतीय रिजर्व बैंक के तय सहज दायरे 2–6 प्रतिशत के भीतर बनी रही। विशेषज्ञों का कहना है कि मांग और आपूर्ति का संतुलन बेहतर रहने तथा वित्तीय अनुशासन बनाए रखने से महंगाई पर अच्छी पकड़ बनी रही। साथ ही, मौद्रिक नीतियों ने भी स्थिरता बरकरार रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
जीएसटी कटौती ने दिया बड़ा सहारा
खर्चों को कम करने के उद्देश्य से सरकार ने सितंबर 2025 में लगभग 400 वस्तुओं और सेवाओं पर जीएसटी दरों में कटौती की। इससे आम उपभोक्ता पर महंगाई का बोझ कम हुआ और बाजारों में सकारात्मक माहौल बना। थोक मूल्य सूचकांक (WPI) आधारित महंगाई दर ने भी वर्ष के मध्य तक गिरावट दर्ज की, जो ईंधन और खाद्य श्रेणियों में राहत को दर्शाती है। यह संकेत देता है कि अर्थव्यवस्था में मूल्य दबाव धीरे-धीरे कम हो रहा है।
खाद्य महंगाई में आई उल्लेखनीय गिरावट
खाद्य वस्तुओं का CPI में लगभग 48 प्रतिशत योगदान है। जनवरी 2025 में खाद्य महंगाई 6 प्रतिशत के आसपास थी, जो जून तक शून्य से नीचे चली गई। नवंबर 2025 में यह और नीचे खिसककर माइनस 3.91 प्रतिशत पर दर्ज की गई। इससे घर-घर का बजट कुछ हद तक मजबूत हुआ और उपभोक्ता भावना में सुधार दर्ज किया गया।
2026 में आएगी नई CPI श्रृंखला
सरकार फरवरी 2026 तक नई CPI श्रृंखला (आधार वर्ष 2024=100) जारी करने की तैयारी में है। इसके तहत कवरेज, मदों की सूची, भार और आंकड़ा-संग्रह विधियों में व्यापक बदलाव होंगे। इस कदम का उद्देश्य है—मुद्रास्फीति के अनुमान को अधिक सटीक, आधुनिक उपभोग पैटर्न के अनुरूप और अंतरराष्ट्रीय मानकों के करीब लाना। विशेषज्ञों का मानना है कि बदलते उपभोग रूझानों को ध्यान में रखते हुए यह सुधार समय की मांग है।
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