मध्य प्रदेश में सरसों की खेती लगातार विस्तार कर रही है। पारंपरिक रूप से गेहूं और सोयाबीन पर निर्भर रहने वाले किसान अब रबी सीजन में सरसों की ओर रुख कर रहे हैं।
मध्य प्रदेश में सरसों की खेती लगातार विस्तार कर रही है। पारंपरिक रूप से गेहूं और सोयाबीन पर निर्भर रहने वाले किसान अब रबी सीजन में सरसों की ओर रुख कर रहे हैं। उपजाऊ मिट्टी, अनुकूल जलवायु और खेती की तुलनात्मक रूप से कम लागत के कारण प्रदेश के कई जिलों खासकर मालवा और बुंदेलखंड क्षेत्रों में सरसों का रकबा तेजी से बढ़ा है। इससे तेलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता की दिशा में भी सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं।
कम लागत, बेहतर लाभ का मजबूत विकल्प
सरसों को कम पानी और सीमित उर्वरकों में भी अच्छी उपज देने वाली फसल माना जाता है। यही कारण है कि सीमित संसाधनों वाले किसानों के लिए यह फसल लाभदायक विकल्प बनती जा रही है। सरकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और बाजार में स्थिर मांग किसानों को बेहतर दाम दिलाने में अहम भूमिका निभाती है। कई स्थानों पर सरसों की फसल पशुओं के चारे और ग्रीन मैन्योर के रूप में भी काम आती है, जिससे किसानों को अतिरिक्त लाभ मिलता है।
प्रसंस्करण उद्योग और स्थानीय रोजगार
सरसों तेल उत्पादन से जुड़े प्रसंस्करण उद्योगों के बढ़ने से स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर भी बढ़े हैं। छोटे और मध्यम स्तर के ऑयल मिल्स से लेकर बड़े ब्रांड तक, सभी के लिए प्रदेश की सरसों महत्वपूर्ण कच्चा माल बन चुकी है। इससे किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों तरह से फायदा हो रहा है।
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