नई दिल्ली। वोल्गा नदी के किनारे बसे रूस के कजान शहर में 22 अक्टूबर से ब्रिक्स (BRICS) का 16वां शिखर सम्मेलन होने जा रहा है। वैसे तो इस संगठन का उद्देश्य आर्थिक रहा है, लेकिन मौजूदा भू-राजनीतिक परिस्थितियों में इसका बड़ा महत्व माना जा रहा है। मेजबान देश रूस का ढाई साल से यूक्रेन के साथ युद्ध चल रहा है, चीन यूरोप और अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर में उलझा है, और इसी साल संगठन का सदस्य बनने वाला ईरान कभी भी इजरायल के साथ युद्ध में घिर सकता है। ऐसे हालात के बावजूद विशेषज्ञों का मानना है कि ब्रिक्स ग्लोबल साउथ यानी विकासशील देशों के बड़े मंच के तौर पर उभर रहा है। इस सम्मेलन में कुछ नए देशों के जुड़ने की भी संभावना है। सम्मेलन में मुख्य रूप से ब्रिक्स के विस्तार, नए पेमेंट सिस्टम की घोषणा और न्यू डेवलपमेंट बैंक को मजबूत बनाने पर चर्चा होने की संभावना है।
ब्रिक्स देशों का विश्व आबादी में 46%, दुनिया की जीडीपी में 29%, और वस्तु व्यापार में 22% हिस्सा है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पिछले सप्ताह ब्रिक्स बिजनेस फोरम में कहा कि ब्रिक्स प्लस देशों की जीडीपी 60 लाख करोड़ डॉलर को पार कर गई है। इस लिहाज से यह संगठन जी-7 से भी बड़ा हो गया है। वर्ष 2023 में वैश्विक विकास में ब्रिक्स का हिस्सा 40% रहा। संगठन के सदस्य देशों की विकास दर इस साल 4% रहने की उम्मीद है, जबकि जी-7 देशों की 1.7% और विश्व औसत 3.2% रहने का अनुमान है। विश्व निर्यात में इन देशों का हिस्सा 25% है।
इस सम्मेलन में कुछ नए देशों के जुड़ने की भी संभावना है। सम्मेलन में मुख्य रूप से ब्रिक्स के विस्तार नए पेमेंट सिस्टम की घोषणा और एनडीबी को मजबूत बनाने पर चर्चा होने की संभावना है। आपात स्थिति में इस्तेमाल के लिए बनाए गए फंड सीआरए में भी सुधार हो सकता है।
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