हिंदू धर्म में कालभैरव जयंती सिर्फ पूजा-पाठ का दिन नहीं, बल्कि यह दिन न्याय, साहस और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है। इस वर्ष कालभैरव जयंती 12 नवंबर 2025, बुधवार के दिन मनाई जाएगी। मान्यता है कि जो भक्त इस दिन श्रद्धा और सच्चे मन से भगवान कालभैरव की पूजा करते हैं, उनके जीवन से भय, कर्ज, शत्रु और दुर्भाग्य दूर हो जाते हैं।
कौन हैं भगवान कालभैरव?
भगवान कालभैरव, भगवान शिव के सबसे उग्र और रौद्र रूप माने जाते हैं। वे समय (काल), मृत्यु, न्याय और दुष्ट शक्तियों के दंडदाता देवता हैं। कथा के अनुसार, जब ब्रह्मा जी ने अहंकारवश भगवान शिव का अपमान किया, तब शिव के क्रोध से कालभैरव प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया। इस कारण उन्हें ‘संहारक’, ‘काल के स्वामी’ और ‘दंडनायक देवता’ कहा जाता है। उनकी सवारी काला कुत्ता (श्वान) है, जो निष्ठा, सतर्कता और न्याय का प्रतीक है।
कालभैरव जयंती का महत्व
मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाई जाने वाली यह जयंती नकारात्मक ऊर्जाओं के विनाश और आत्मिक शुद्धि का पर्व है। इस दिन कालभैरव की आराधना से जीवन के सभी संकट समाप्त होते हैं ,कर्ज से मुक्ति मिलती है, शत्रु पर विजय प्राप्त होती है। भय और दुर्भाग्य दूर होते हैं। शनि दोष और तंत्र संबंधी बाधाएं समाप्त होती हैं। इस दिन कालभैरव मंदिरों में काला तिल, दीपक, कुत्तों को भोजन और शराब का भोग चढ़ाना शुभ माना जाता है।
भगवान कालभैरव को चढ़ाएं ये 5 विशेष भोग
इमरती का भोग
इमरती भगवान कालभैरव की सबसे प्रिय मिठाई मानी जाती है। मान्यता है कि इसे चढ़ाने से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है। इमरती अग्नि तत्व का प्रतीक है, जो नकारात्मकता को जलाकर नष्ट कर देती है।
दही-बड़े
दही-बड़े को तामसिक भोग माना गया है, जो कालभैरव की उग्र शक्ति को शांत और संतुलित करता है। इस भोग से जीवन में संतुलन, स्थिरता और शक्ति बढ़ती है।
उड़द दाल की खिचड़ी
उड़द दाल भगवान शिव की पूजा में अत्यंत शुभ मानी जाती है। जयंती के दिन उड़द की खिचड़ी का भोग लगाने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। जो कार्य अटके हों या बाधित हों, वे तेजी से पूरे होते हैं।
काले तिल से बने भोग
काले तिल से बनी गजक, रेवड़ी या तिल के लड्डू चढ़ाना अत्यंत शुभ माना जाता है। यह उपाय शनि ग्रह के दोषों को कम करता है, और सौभाग्य तथा धनवृद्धि लाता है।
शराब का भोग
भगवान कालभैरव को मदिरा (शराब) का भोग प्राचीन काल से लगाया जाता रहा है। यह भोग-विलास नहीं बल्कि आध्यात्मिक समर्पण और निर्भयता का प्रतीक है। मान्यता है कि इससे व्यक्ति के जीवन से कर्ज, भय और अंधकारमय समय समाप्त हो जाता है।