


हर वर्ष 1 अगस्त को ‘विश्व फेफड़ों के कैंसर दिवस’ मनाया जाता है। यह दिन उस गंभीर रोग की ओर वैश्विक ध्यान आकर्षित करता है जो धीरे-धीरे जीवन को भीतर से खोखला कर देता है—फेफड़ों का कैंसर। यह अवसर सिर्फ चिकित्सा विज्ञान के लिए ही नहीं, समाज के हर वर्ग के लिए एक चेतावनी है कि कैसे हमारी आदतें, परिवेश और जीवनशैली हमें गंभीर रोगों की ओर धकेल सकते हैं।
भारत में फेफड़ों के कैंसर के मामले तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। विशेष रूप से पुरुषों में यह कैंसर की एक प्रमुख वजह बनकर उभरा है। धूम्रपान, बढ़ता वायु प्रदूषण, घरेलू ईंधनों का धुआँ और शहरीकरण के कारण हवा में घुलते विषाक्त तत्व—ये सब मिलकर फेफड़ों की कार्यक्षमता को प्रभावित करते हैं। चिंताजनक तथ्य यह है कि अधिकांश रोगियों को तब इस बीमारी का पता चलता है जब यह अपने आरंभिक चरणों को पार कर चुकी होती है, जिससे उपचार जटिल हो जाता है।
धूम्रपान फेफड़ों के कैंसर का सबसे बड़ा कारण है, लेकिन यह एकमात्र नहीं है। जिन घरों में अब भी लकड़ी, कोयला या गोबर से खाना पकता है, वहां धुएँ के लंबे संपर्क में रहने से भी महिलाएँ और बच्चे विशेष रूप से प्रभावित होते हैं। इसके अलावा शहरी इलाकों में वाहनों और कारखानों का प्रदूषण, और पैसिव स्मोकिंग (यानी दूसरे के धुएँ के संपर्क में आना) भी खतरे को बढ़ाता है।
फेफड़ों के कैंसर के लक्षण शुरू में आम बीमारी जैसे ही प्रतीत होते हैं—लगातार खांसी, खांसी में खून, सीने में दर्द, सांस लेने में कठिनाई, आवाज़ का भारी हो जाना, अचानक वजन घटना और लगातार थकान। इन्हें अक्सर लोग नज़रअंदाज़ कर देते हैं, जिससे बीमारी गंभीर होती जाती है। लेकिन यदि समय रहते जाँच करवा ली जाए, तो इलाज की सफलता की संभावना काफी बढ़ जाती है।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में अब सर्जरी, कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी, इम्यूनोथेरेपी और टार्गेटेड थेरेपी जैसे अनेक विकल्प मौजूद हैं, जो रोग के स्तर और शरीर की स्थिति के अनुसार अपनाए जा सकते हैं। मगर इस जटिल उपचार प्रक्रिया से बचने का सबसे बेहतर तरीका है—रोकथाम।
बचाव के लिए सबसे ज़रूरी है कि धूम्रपान से पूर्णतः दूरी बनाई जाए, वायु प्रदूषण से बचने के लिए आवश्यक सावधानियाँ बरती जाएँ और स्वस्थ दिनचर्या अपनाई जाए। नियमित व्यायाम, संतुलित आहार और समय-समय पर स्वास्थ्य जांच न केवल कैंसर से बल्कि अन्य गंभीर बीमारियों से भी बचाव में सहायक होते हैं।
1 अगस्त को मनाया जाने वाला फेफड़ों के कैंसर दिवस हमें सिर्फ जानकारी नहीं देता, बल्कि एक सामूहिक जिम्मेदारी का भी स्मरण कराता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि फेफड़ों की रक्षा केवल रोग से नहीं, जीवनशैली से भी जुड़ी है। आइए, इस अवसर पर हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि स्वस्थ साँसों के लिए न केवल स्वयं सजग रहेंगे, बल्कि समाज को भी जागरूक करेंगे। यही इस दिवस की सच्ची सार्थकता होगी।