


जन्माष्टमी का मौका हो और वृंदावन के बांके बिहारी का जिक्र न हो ऐसा ही ही नहीं सकता है। कान्हाजी की जन्मस्थली मथुरा के वृंदावन में स्थित बांके बिहारी मंदिर में भगवान के बाल स्वरूप की पूजा होती है। जन्माष्टमी के मौके पर यहां की छटा अलग ही दिखाई देती है। इस मंदिर में जन्माष्टमी के मौके पर कान्हाजी के दर्शन के लिए भारी भीड़ उमड़ती है। दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और कृष्ण भक्ति में रम जाते हैं। बांके बिहारी मंदिर में जन्माष्टमी के मौके पर मंगला आरती होती है, जिसकी खासियत यह है कि ये सिर्फ इसी दिन होती है।
कान्हाजी की नींद नहीं खराब की जाती है
बांके बिहारी मंदिर में बाल गोपाल जी की पूजा होती है। यानी भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप को पूजा जाता है। ऐसे में श्रद्धालु भगवान की पूजा एक बच्चे के तौर पर करते हैं। वैसे भी छोटे बच्चे सुबह देर तक सोते हैं। और मंगला आरती सुबह-सुबह होती है इसलिए बांके बिहारी जी को शयन करने दिया जाता है। यह भगवान के प्रति श्रद्धा जताने का एक तरीका है ताकि सुबह के समय कान्हाजी की नींद न खराब हो और वह जब नींद पूरी करके उठें तो श्रद्धालुओं को प्रसन्न होकर दर्शन दें।
सिर्फ जन्माष्टमी पर ही होती है मंगला आरती
अब सवाल यह है कि जब पूरे साल मंगला आरती नहीं होती है तो फिर जन्माष्टमी के दिन ही मंगला आरती के लिए क्यों बांके बिहारी मंदिर के कपाट खोले जाते हैं। इसकी वजह यह बताई जाती है कि भगवान कृष्ण का जन्म आधी रात को हुआ था। यह बेहद खास मौका है जो साल में एक बार आता है। इसलिए कृष्ण जन्मोत्सव के मौके पर खुशियां मनाई जाती हैं। रातभर जागा जाता है। और रात 12 बजे भगवान कृष्ण के जन्म के बाद मंगला आरती की जाती है।