


क्या आपने कभी किसी खिलाड़ी को अपने ही नाम के टूर्नामेंट में गोल्ड जीतते देखा है? भारत के जैवलिन हीरो नीरज चोपड़ा ने ऐसा कर दिखाया है। बेंगलुरु की ऐथलेटिक्स ट्रैक पर इतिहास लिखा गया, जब नीरज ने नीरज चोपड़ा क्लासिक के पहले संस्करण में जीत दर्ज की और देश को एक बार फिर गौरवान्वित कर दिया।
अपने नाम का टूर्नामेंट, और जीत भी अपने नाम
नीरज चोपड़ा क्लासिक यह सिर्फ एक टूर्नामेंट नहीं था, बल्कि भारतीय एथलेटिक्स के नए युग की शुरुआत थी। खास बात यह थी कि यह इवेंट नीरज चोपड़ा के सम्मान में शुरू किया गया और इसके पहले ही एडिशन में उन्होंने खुद गोल्ड मेडल जीतकर इसे और खास बना दिया।
"मैं अब भी नंबर 1 हूं"
नीरज ने 86.18 मीटर की दूरी तक भाला फेंककर बाकी सभी 11 प्रतिभागियों को पीछे छोड़ दिया। भारत और दुनियाभर से आए कुल 12 जैवलिन थ्रोअर इस प्रतिस्पर्धा में शामिल थे, लेकिन नीरज ने अपनी क्लास और अनुभव का जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए सबको पीछे छोड़ दिया।
सिर्फ प्रदर्शन नहीं, प्रेरणा भी हैं नीरज
नीरज की इस जीत का महत्व सिर्फ आंकड़ों तक सीमित नहीं है। इस टूर्नामेंट के ज़रिए उन्होंने युवा खिलाड़ियों को ये संदेश दिया कि भारत अब सिर्फ क्रिकेट नहीं, एथलेटिक्स में भी चमक सकता है। नीरज चोपड़ा क्लासिक जैसे इवेंट्स युवा टैलेंट को एक बड़ा मंच देने की दिशा में बड़ा कदम हैं।
क्या अब नज़र पेरिस ओलंपिक पर?
नीरज की यह जीत आने वाले पेरिस ओलंपिक 2026 की तैयारी का हिस्सा मानी जा रही है। अगर उनकी फॉर्म और फिटनेस इसी तरह बनी रही, तो वह एक बार फिर ओलंपिक गोल्ड के प्रबल दावेदार होंगे। नीरज ने सिर्फ थ्रो नहीं फेंका, बल्कि देश के लाखों युवाओं के दिलों में उम्मीद का बीज भी बो दिया है। और इस जीत के साथ उन्होंने फिर से जता दिया — वो सिर्फ खिलाड़ी नहीं, एक प्रेरणा हैं।