150 साल बाद भी भारत की सबसे बड़ी मस्जिद होने का खिताब अपने नाम रखने वाली MP की राजधानी भोपाल में स्थित ताज-उल-मसाजिद का निर्माण भोपाल के किसी नवाब ने नहीं बल्कि, बेगम ने शुरु करवाया था। आपको जानकर हैरानी होगी, लेकिन भोपाल की शाहजहां बेगम ने इस मस्जिद को दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद बनाने का इरादा किया था। लेकिन, फिर कुछ ऐसी परिस्थितियां बनीं, जिनके चलते बेगम भोपाल का वो इरादा एक ख्वाब बनकर ही रह गया। आइये जानते हैं, वो क्या कारण था, जिसने भोपाल की बेगम को दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद की तामीर से रोक दिया।
शाहजहां बेगम ने साल 1877 में ताज-उल-मसाजिद का निर्माणकार्य शुरु कराया था। उनकी ख्वाहिश थी कि, वो दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद की तामीर अपने शहर भोपाल में करें। इसके लिए उन्होंने मस्जिद की ड्राफ्टिंग की, जिसमें मस्जिद परिसर से सटा ताजमहल, गोलघर, बाबे अली स्टेडियम समेत 27 इमारतों को ताज-उल-मसाजिद का हिस्सा बनाने की तैयारी कर ली गई थी। जोर शोर से काम भी शुरु हुआ, लेकिन फिर पैसों की कमी और बेगम की तबियत खराब रहने के चलते निर्माण कार्य धीमा हुआ और आखिरकार शाहजहां बेगम की मृत्यु के कारण मसाजिद का निर्माण कार्य रुक गया।
इस तरह बनती दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद
1971 में इस मसाजिद का काम एक बार फिर से शुरू हो गया, लेकिन ये शाहजहां बेगम का सपना पूरा नहीं कर पाई। लेकिन फिर भी दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद न होने के बावजूद ताज-उल-मसाजिद देश की सबसे बड़ी मस्जिद का दर्जा अपने नाम किया। ताजुल मसाजिद की विशालता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि, मस्जिद के नजदीक मोतिया तालाब को उसके वुजू खाने के रूप में प्लान किया गया था। कहा जाता है कि एक बार मोतिया तालाब में शाहजहां बेगम ने एक आदमी को रूमाल धोते देख लिया था उसे चौराहे पर खड़ा करके समझाया कि जो पानी लोगों को पिलाने की ताकत रखता हो उसे इस तरह कपड़ा धोकर खराब नहीं करते।