


भारतीय शिक्षा प्रणाली आज जिस दिशा में बढ़ रही है, उसमें सफलता का मापदंड केवल नंबरों और रैंक तक सिमटता जा रहा है। बच्चों की दिनचर्या इतनी एकरस और बोझिल हो गई है कि रचनात्मकता, मानसिक स्वास्थ्य और आनंददायक शिक्षा कहीं पीछे छूट गए हैं।
एकरस दिनचर्या की वास्तविकता
भारतीय स्कूलों में अधिकांश बच्चों का दिन सुबह जल्दी उठकर स्कूल जाने से शुरू होता है, जहाँ घंटों तक क्लासरूम में बैठकर रट्टा मार पढ़ाई कराई जाती है। इसके बाद ट्यूशन, होमवर्क और परीक्षा की तैयारी में दिन का बाकी हिस्सा निकल जाता है। खेल, कला, संगीत और मन की शांति के लिए समय लगभग शून्य रह जाता है। परिणामस्वरूप, यह दिनचर्या एक मशीन की तरह प्रतीत होती है – जिसमें भावना, रुचि और स्वभाव के लिए कोई स्थान नहीं बचता।
मानसिक तनाव की बढ़ती समस्या
इस एकरूपता और अत्यधिक प्रतिस्पर्धा से बच्चों में मानसिक तनाव, अवसाद (डिप्रेशन), आत्मविश्वास की कमी और यहां तक कि आत्महत्या तक के मामले सामने आ रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 14 से 18 वर्ष की आयु के बच्चों में से लगभग 25% को मानसिक स्वास्थ्य संबंधी किसी न किसी समस्या का सामना करना पड़ता है। इसका एक बड़ा कारण शिक्षा प्रणाली की कठोरता और माता-पिता व समाज की अत्यधिक अपेक्षाएँ हैं।
समाधान की दिशा में कुछ सुझाव
1. शिक्षा में विविधता: स्कूलों में पाठ्यक्रम को रोचक, रचनात्मक और जीवन उपयोगी बनाया जाना चाहिए। सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि व्यवहारिक ज्ञान भी जरूरी है।
2. मनोरंजन और खेल: बच्चों को पर्याप्त खेल और रचनात्मक गतिविधियों का अवसर दिया जाना चाहिए जिससे उनका मानसिक और शारीरिक विकास संतुलित रूप से हो।
3. परामर्श सेवाएँ: स्कूलों में प्रशिक्षित काउंसलर की नियुक्ति जरूरी है ताकि बच्चे खुलकर अपनी समस्याएँ साझा कर सकें।
4. अभिभावकों की भूमिका: माता-पिता को भी समझना होगा कि हर बच्चा अलग होता है। तुलना, दबाव और जबरन करवाई गई पढ़ाई से बच्चे का आत्मबल टूटता है।
5. मूल्य आधारित शिक्षा: शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ नौकरी पाना नहीं, बल्कि एक संतुलित, सहनशील और खुशहाल नागरिक बनाना होना चाहिए।
भारतीय शिक्षा प्रणाली को अब बदलने की आवश्यकता है। यदि हम बच्चों के भविष्य को उज्जवल बनाना चाहते हैं, तो उन्हें बोझ तले दबाना नहीं, बल्कि पंख देकर उड़ने की स्वतंत्रता देनी होगी। शिक्षा को जीवन से जोड़ना और बच्चों की रुचियों व मानसिक स्वास्थ्य का सम्मान करना समय की मांग है।