मंदिर के वरिष्ठ प्रबंधक श्री अनिल पाठक बताते हैं कि उनके ससुर स्व. पंडित बनवारी लाल शर्मा प्रयागराज के निवासी थे। उनके मामा स्व. पंडित शिवधनहारी व स्व. पंडित छोटेलाल मंदिर प्रांगण में अखाड़े का संचालन करते थे। उन दोनों ने ही हनुमान जी की मूर्ति स्थापना की थी। वह दोनों बाल ब्रह्मचारी थे। जिस कारण उन्होंने अपने भांजे पंडित बनवारी लाल जी को बुला कर उन्हें मंदिर की गद्दी सौंप दी। इसके बाद विधिक रूप से मंदिर की सेवा और प्रबंधन उन्होंने अपनी बेटी कृष्णा पाठक व उनके पुत्रों को सौंपकर स्वर्गवासी हो गए।
स्व. बनवारी लाल जी ने 1932 से 1985 तक मंदिर की सेवा की। वह रामकथा मर्मज्ञ थे। उनके द्वारा प्रतिदिन शाम को रामकथा सत्संग आयोजित किया जाता था, जो उनके निधन के बाद अब उनके शिष्य अजीत शर्मा द्वारा किया जाता है। उस समय हनुमान जी की मूर्ति लगभग 15 फीट ऊंचाई पर चबूतरे पर स्थापित की गई थी। यद्यपि मंदिर में अनेक बदलाव हो चुके हैं लेकिन मंदिर अपने मूल अस्तित्व के धरोहर स्वरूप को संजोए हुए है। मंदिर के पास से बुढ़ाना तक लोग तांगे से जाते थे। बुढ़ाना गेट पुलिस चौकी के पास गेट हुआ करता था। जिस कारण इस जगह का नाम बुढ़ाना गेट पड़ा। यहां पर एक प्याऊ भी बना हुआ था।
मंदिर परिसर में एक कुंआ भी था। जहां पर राहगीर पानी पीकर अपनी प्यास बुझाते थे। मंदिर प्रांगण में विशालकाय पीपल वृक्ष लगभग 155 वर्ष पुराना है। अनिल पाठक के पुत्र डा. गौरव, वैभव व अभिनव पाठक भी मंदिर की व्यवस्था में हाथ बंटाते हैं। मंदिर की मूर्ति जिस रूप में स्थापित की गई थी, आज भी वैसे ही मूल स्वरूप में है।
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