हेमांशा मेहता
रक्षाबंधन का पर्व देशभर में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। प्राचीन काल से यह त्योहार प्रति वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, जिसमें बहन अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र अर्थात राखी बांधकर भाई से रक्षा का वचन लेती है। इस दिन भाई अपनी बहन की हर मांग पूरी करता है। जिसमें वो अपनी बहन को उपहार, पैसे और मिठाईयां भी देते हैं। इस दिन भाई बहन आपसी झगड़ों को भुलाकर प्रेम से पूरे परिवार के साथ समय बिताते हैं।
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रक्षा बंधन को लेकर बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक भगवान विष्णु जी से जुड़ी हैं। भगवान विष्णु जी से जुड़ी इस कथा के अनुसार दैत्यों के राजा बलि 100 अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे। जिस वजह से देवता भय में आ गए, कि कहीं राजा बलि स्वर्ग के राजा इंद्र की पदवी प्राप्त करके अपनी शक्तियों से स्वर्ग लोक पर भी अधिकार न कर लें जिस कारण वे सहायता के लिए भगवान विष्णु जी के पास गए। भगवान विष्णु जी ने बामन रुप बनाया और राजा बलि की 100 अश्वमेध यज्ञ संपूर्ण होने से पूर्व बलि के पास जाकर उनसे भिक्षा मांगी। भीक्षा में राजा बलि ने तीन पग भूमि देने का वादा किया। तब भगवान विष्णु ने एक पग में स्वर्ग दूसरे में पृथ्वी को लिया।
तीसरा पग आगे बढ़ता देख बलि परेशान हो गया और अपना सिर उनरे चरणों के नीचे रख दिया। इस तरह बलि से स्वर्ग और पृथ्वी पर राज करने का अधिकार छीन लिया गया और वह रसातल में चला गया। तब बलि ने अपनी भक्ति से भगवान विष्णु से हर समय अपने सामने रहने का वचन लिया जिस कारण विष्णु जी को राजा बलि का द्वारपाल बनना पड़ा। इससे माता लक्ष्मी जी दुविधा में पड़ गई और व्याकुल हो गई। वह किसी भी तरह से भगवान विष्णु जी को रसातल से वापस लाना चाहती थी।
जिसके लिए नारद जी से उन्हे एक समाधान मिला और वो बलि के पास पहुंच गई वहां लक्ष्मी जी ने राजा बलि को राखी बांधकर उन्हे अपना भाई बना लिया तथा उपहार में अपने पति विष्णु जी को वापस मांगा। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था और तबसे ही रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाने लगा।
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