भारत ना सिर्फ एक धार्मिक मान्यताओं वाला देश है बल्कि सनातन धर्म से जुड़ीं प्राचीन धरोहरों का एक प्रतीक स्थल भी है. माता शक्ति के अनेक रूपों का ना सिर्फ वंदन किया जाता है बल्कि सभी देवी देवताओं में मां शक्ति का प्रमुख स्थान है. राजस्थान में जीण माता की भक्तों में बेहद ज्यादा मान्यता है. शेखावाटी इलाके में सीकर-जयपुर रोड पर जीणमाता गांव में मां का बेहद प्राचीन मंदिर भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है. ये मंदिर ना सिर्फ खूबसूरत जंगल के बीचोबीच बना है बल्कि तीन छोटी पहाड़ियों के बीच स्थित है.
कभी रहा होगा तंत्र साधना की तपस्थली
देश के प्राचीन शक्तिपीठों में से एक जीण माता मंदिर दक्षिणमुखी है. मंदिर की दीवारों पर तांत्रिकों की मूर्तियां लगी हैं जो बताती हैं कि पहले कभी ये तांत्रिकों की साधना का केंद्र रहा होगा. मंदिर के अंदर जीण भगवती की अष्टभुजी प्रतिमा है. पहाड़ के नीचे स्थित मंडप को गुफा कहा जाता है. साथ ही यहां महात्मा का तपोस्थान भी मौजूद है और इसे श्रद्धालु धुणा के नाम से जानते हैं. मंदिर के अंदर आठ शिलालेख स्थापित हैं. मंदिर को आठवीं सदी में निर्मित माना जाता है. यहां मौजूद सबसे पुराना शिलालेख संवत 1029 का है.
जीण माता का संक्षिप्त इतिहास
मान्यताओं के मुताबिक जीण माता ने राजस्थान के चूरू में घांघू गांव के एक राजघराने में जन्म लिया था. मां शक्ति का अवतार माना गया और उनके बड़े भाई हर्ष को भगवन शिव का अवतार कहा जाता है. कथाओं के मुताबिक एक बार दोनों भाई-बहन के बीच विवाद हुआ और मां ने इस स्थान पर आकर तपस्या शुरू कर दी |बहन के रुठ जाने से परेशान भाई हर्ष भी पीछे-पीछे यहां पहुंच गए और बहन को मनाने की तमाम कोशिश की लेकिन उनके हाथ निराशा ही लगी. जिसके बाद वो भी पास के ही एक स्थान पर तपस्या करने लगे. इस स्थान पर अपरावली की पहाड़ियों के बीच हर्षनाथ का मंदिर है.
मुग़ल सम्राट औरंगजेब को होना पड़ा था नतमस्तक
मुगल बादशाह औरंगजेब की सेना ने जब शेखावटी के मंदिरों में तोड़फोड़ शुरू की तो लोगों ने मां जीणमाता से गुहार लगाई. मां ने अपने चमत्कार से औरंगजेब की सेना पर मधुमक्खियों की विशाल सेना छोड़ दी. जिससे लहूलुहान होकर औरंगजेब के सैनिक भाग खड़े हुए. मान्यता है कि औरंगजेब ने मां से क्षमायाचना की और मंदिर में अखंड दीप के लिए तेल भेजने का वचन दिया. जिसके बाद दिल्ली से और फिर जयपुर से दीपक के लिए तेल की व्यवस्था की जाती रही. इस चमत्कार के बाद जीणमाता भंवरों की देवी कही जाने लगीं.
माँ के चमत्कारों से बेहद प्रभावित था औरंगजेब
मुगल बादशाह ने प्रभावित होकर मंदिर में मां की स्वर्णमूर्ति भेंट की थी. जिसके बाद से आज भी मंदिर में स्वर्णछत्र चढ़ाए जाते हैं. कुष्ठरोगियों के लिए यहां बड़ी मान्यता है कि ये लोग दर्शन मात्र से स्वस्थ हो जाते हैं.
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