अयोध्या में 22 जनवरी को राम मंदिर में राम लला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होनी है. लेकिन चारों शंकराचार्यों ने कहा है कि वे इस समारोह में शामिल नहीं होंगे. अपने इस फैसले के बाद शंकराचार्य चर्चा में हैं. शंकराचार्य चार हिंदू मठों द्वारका (गुजरात), जोशीमठ (उत्तराखंड), पुरी (ओडिशा) और श्रृंगेरी (कर्नाटक) के प्रमुख हैं. इन मठों की स्थापना आठवीं शताब्दी के धार्मिक विद्धान और दार्शनिक आदि शंकर ने की थी. शंकराचार्य हिंदू धर्म में सर्वोच्च गुरु का पद है जो बौद्ध धर्म में दलाई लामा और ईसाई धर्म में पोप के समकक्ष है.
कब हुई शंकराचार्य की शुरुआत
इस पद की शुरुआत आदि शंकराचार्य से मानी जाती है. आदि शंकराचार्य एक हिंदू दार्शनिक और धर्मगुरु थे, जिन्हें हिंदुत्व के सबसे महान प्रतिनिधि में एक के तौर पर जाना जाता है. आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की प्रतिष्ठा के लिए भारत के चार क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किए.
कैसे बने शुरुआती शंकराचार्य
चार मठों के प्रमुख को शंकराचार्य कहा गया. इन मठों की स्थापना करके आदि शंकराचार्य ने उन पर अपने चार प्रमुख शिष्यों को आसीन किया. तब से ही इन चारों मठों में शंकराचार्य पद की परंपरा चली आ रही है. हर मठ का अपना एक विशेष महावाक्य भी होता है.
कौन थे आदि शंकराचार्य
आदि शंकराचार्य (जन्म नाम: शंकर, जन्म:788 ई. मृत्यु-820 ई.) अद्धैत वेदांत के प्रणेता, संस्कृत के विद्धान, उपनिषद व्याख्याता और हिंदू धर्म प्रचारक थे. हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार इनको भगवान शंकर का अवतार माना जाता है. इन्होंने लगभग पूरे भारत की यात्रा की. इनके जीवन का अधिकांश भाग उत्तर भारत में बीता. चार पीठों की स्थापना इनका मुख्य रूप से उल्लेखनीय काम था. उन्होंने कई ग्रंथ लिखे, किंतु उनका दर्शन, उपनिषद, ब्रह्मसूत्र और गीता पर लिखे उनके भाष्यों में मिलता है. आदि शंकराचार्य ने चारों मठों के अलावा पूरे देश में बारह ज्योरतिर्लिंगों की भी स्थापना की थी. आदि शंकराचार्य को अद्धैत परंपरा का प्रवर्तक माना जाता है.
क्या है शंकराचार्य बनने की योग्यता
देश की चारों पीठों पर शंकराचार्य की नियुक्ति के लिए ये योग्यता जरूरी है- ऐसा ब्राह्म्ण जो स्वभाव से त्यागी हो, ब्रह्मचारी हो. डंडी संन्यासी हो, संस्कृत, चतुर्वेद, वेदांत और पुराणों का ज्ञाता हो, राजनीतिक न हो.
कहां हैं शंकराचार्यों के चार मठ
ये चारों मठ आठवीं शताब्दी में स्थापित किए गए थे. ये चारों मठ आज भी चार शंकराचार्यों के नेतृत्व में सनातन परंपरा का प्रचार व प्रसार कर रहे हैं. हर शंकराचार्य को अपने जीवनकाल में ही सबसे योग्य शिष्य को उत्तराधिकारी बनाना होता है. ये चार मठ देश के चार कोनों में हैं.
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