आमतौर पर वीकेंड और सप्तमी अष्टमी को यहां लाखों लोग आते हैं। इस बार भी शनिवार-रविवार की छुट्टी में माता के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। दिन में तो भीड़ कम रहती हैं लेकिन रात में सड़कों पर पैर रखने की जगह नहीं मिली। अक्सर पुलिस को यातायात परिवर्तित करना पड़ता हैं।
टेकरी पर विराजित हैं तुलजा भवानी और चामुंडा माता
देवास की माता टेकरी को रक्त पीठ कहा जाता है। यहां मां तुलजा भवानी और चामुंडा माता विराजमान हैं। कालिका मां का मंदिर भी है। कहा जाता है कि तुलजा भवानी (बड़ी माता) और चामुंडा माता (छोटी माता) बहनें हैं। देवास के बारे में कहा जाता है कि इंदौर के पूर्ववर्ती होलकर राजवंश की कुलदेवी तुलजा भवानी है तो देवास के पूर्ववर्ती पवार राजवंश की कुलदेवी चामुंडा माता है। चामुंडा माता मंदिर के पास ही भैरव मंदिर है। टेकरी मार्ग में अन्नपूर्णा माता, खो-खो माता, अष्टभुजा, हनुमान मंदिर है। शारदीय नवरात्रि में यहां नौ दिनों में लाखों लोग दर्शन करने आते हैं। कई लोग नंगे पैर जाते हैं तो कुछ घुटनों के बल चलकर मां के दरबार में पहुंचते हैं।
राजा भर्तृहरि आए थे माता टेकरी
देवास की माता टेकरी का नाथ संप्रदाय के साहित्य में भी उल्लेख है। एक पुस्तक में वर्णन मिलता है कि उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के भाई भर्तृहरि ने वैराग्य होने पर इसी माता टेकरी पर तप किया था। यहां योगेंद्र शीलनाथ जी की धूनी भी है। महाकवि चंदबरदाई का भी टेकरी आने का उल्लेख है। इसके अलावा भी अन्य कई मान्यताएं माता टेकरी से जुड़ी हैं। अंग्रेजी के ख्यात लेखक ईएम फोस्टर ने भी अपनी पुस्तक में देवास को 'हिल ऑफ देवी' लिखा है। पहले यहां घना जंगल था। आने जाने का मार्ग भी दूभर था। धीरे-धीरे विकास होने पर सुविधाएं बढ़ती गई और मार्ग सुगम हुआ।
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