उत्तरकाशी के सीमांत क्षेत्र हर्षिल, नेलांग, जादुंग में इन दिनों लोसर त्योहार की धूम है। भोटिया जनजाति के लोग होली, दीपावली और नए साल का जश्न एक साथ मनाते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भोटिया जनजाति के लोग भेड़-बकरियां पालते थे। यहां के लोग अधिकांश जीवन भेड़, बकरियों के साथ जंगलों में ही गुजारते थे जिसके कारण यह लोग त्योहार नहीं माना पाते थे।
आटे से खेली जाती है होली
बसंत ऋतु के आगवन के साथ यह लोग भेड़, बकरियों को जंगलों से अपने गांव में लाते थे और फिर शुरू होता था जश्न। जिसे हम लोसर के नाम से जानते हैं पहले दिन दीपावली मनाई जाती है जिसमें गांव के सभी लोग एक साथ माता रिंगाली देवी के मन्दिर में इकट्ठा होकर भैलो जलाकर दीपावली मनाते हैं फिर अगले दिन गांव के सभी रिश्तेदारों को घर में आमंत्रित किया जाता है फिर शुरू होती है होली। इस मौके लोग एक दूसरे को आटा लगाते है। त्योहार के अंतिम दिन नये साल का आगाज होता है जिसमें घरों में जमाई गई हरियाली को एक दूसरे को उपहार में देकर नये साल की शुभकामनाएं दी जाती है साथ ही पुराने साल में की गई गलतियों के लिए माफी मांगी जाती है। गौर करने वाली बात इस त्योहार में यह है कि तीन दिन तक चलने वाले इस मेले में गांव के सभी ग्रामीणों का भोजन माता रिंगाली देवी के प्रांगण में एक साथ बनाया जाता है।
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