


मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में डाउन सिंड्रोम बीमारी से पीड़ित बच्चे भी तेजी से बढ़ रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में हर साल औसतन क्रोमोजोम बढ़ने से होने वाली इस लाइलाज बीमारी से पीड़ित 37 हजार बच्चे जन्म ले रहे हैं। भोपाल जिला शीघ्र हस्तक्षेप केंद्र में 1000 से अधिक ऐसे बच्चों के मामले दर्ज है। भोपाल के जेपी जिला अस्पताल में 100 से अधिक ऐसे बच्चे उपचार के लिए आते हैं, जहां प्रदेश का पहला डाउन सिंड्रोम पुनर्वास केंद्र है। भोपाल में हर साल औसत 90 से 100 बच्चे डाउन सिंड्रोम से पीड़ित पैदा हो रहे हैं।
जागरुकता का अभाव
विशेषज्ञ बताते हैं कि कुछ लोग जागरुकता के अभाव में डीइआइसी को इस बीमारी से ग्रस्त बच्चे के पैदा होने की सूचना नहीं देते हैं। कुछ को अपने बच्चों में इस बीमारी का पता ही नहीं चल पाता है। इसके अलावा निजी अस्पतालों में उपचार कराने वाले अपने बच्चे के नाम सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं कराते हैं।
क्या है डाउन सिंड्रोम?
डाउन सिंड्रोम एक आनुवंशिक बीमारी है। यह क्रोमोजोम की संख्या के कम या अधिक होने से होती है। गर्भावस्था में भ्रूण को 46 क्रोमोजोम मिलते हैं। इनमें से 23 माता और 23 पिता के होते हैं। लेकिन डाउन सिंड्रोम पीड़ित बच्चों में 21वे क्रोमोजोम की एक प्रति अधिक होती है। उसमें 47 क्रोमोजोम होते हैं।