


भारत के ऊर्जा संसाधनों में जलविद्युत एक महत्वपूर्ण और पर्यावरण-अनुकूल विकल्प है। मध्यप्रदेश, अपनी भौगोलिक बनावट और नदियों की बहुलता के कारण जलविद्युत उत्पादन के क्षेत्र में अपार संभावनाओं से युक्त है। राज्य की सरकार भी इन संसाधनों के उपयोग हेतु योजनाएं बना रही है।
प्राकृतिक संसाधन एवं नदियाँ
मध्यप्रदेश में नर्मदा, ताप्ती, चंबल, बेतवा, केन और सोन जैसी प्रमुख नदियाँ बहती हैं। इन नदियों की ऊँचाई में गिरावट और तेज प्रवाह वाले क्षेत्र जलविद्युत परियोजनाओं के लिए उपयुक्त हैं। विशेष रूप से नर्मदा घाटी जलविद्युत विकास का केंद्र बन सकती है।
वर्तमान परियोजनाएँ और उत्पादन
राज्य में इंदिरा सागर, ओंकारेश्वर, बरगी और बाणसागर जैसी प्रमुख जलविद्युत परियोजनाएँ चल रही हैं। इंदिरा सागर परियोजना से लगभग 1000 मेगावाट तक विद्युत उत्पादन होता है। इन परियोजनाओं ने राज्य को ऊर्जा आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर किया है।
अपार उपयोग की संभावनाएँ
मध्यप्रदेश में अभी भी कई छोटी और मध्यम श्रेणी की नदियाँ हैं जिनका उपयोग कर माइक्रो या मिनी हाइड्रो पावर प्लांट लगाए जा सकते हैं। इससे दूरस्थ क्षेत्रों में बिजली पहुँचाई जा सकती है और ग्रामीण विकास को गति मिल सकती है।
चुनौतियाँ
हालाँकि जलविद्युत पर्यावरण के लिए अपेक्षाकृत स्वच्छ ऊर्जा है, फिर भी बाँध निर्माण से विस्थापन, जैवविविधता पर प्रभाव और सामाजिक विरोध जैसी चुनौतियाँ सामने आती हैं। इसके अलावा, बारिश पर निर्भरता इसे अनिश्चित बनाती है।
सरकारी नीतियाँ और निवेश की जरूरत
राज्य सरकार ने “नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा नीति” के तहत जलविद्युत को भी शामिल किया है। यदि निजी निवेशकों को प्रोत्साहित किया जाए और प्रक्रिया को सरल बनाया जाए तो हाइड्रो सेक्टर में उल्लेखनीय विकास हो सकता है।
मध्यप्रदेश में जलविद्युत के क्षेत्र में बहुत संभावनाएँ हैं। यदि इन संसाधनों का उचित और संतुलित उपयोग किया जाए तो यह राज्य को न केवल ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बना सकता है, बल्कि हरित विकास की दिशा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।