


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रसिद्ध अर्थशास्त्री मेघनाद देसाई के निधन पर शोक जताया। साथ ही उन्होंने भारत-ब्रिटेन संबंधों को प्रगाढ़ बनाने में उनकी भूमिका की सराहना की। इस संबंध में पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर पोस्ट करते हुए मेघनाद देसाई के निधन पर दुख जताया। उन्होंने लिखा, “प्रख्यात विचारक, लेखक और अर्थशास्त्री मेघनाद देसाई के निधन से व्यथित हूं। वे सदैव भारत और भारतीय संस्कृति से जुड़े रहे। उन्होंने भारत-ब्रिटेन संबंधों को प्रगाढ़ बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हमारी बातचीत, जहां उन्होंने अपने बहुमूल्य विचार साझा किए थे, को मैं स्नेहपूर्वक याद करूंगा। उनके परिवार और मित्रों के प्रति संवेदना। ॐ शांति।”
गुजरात में जन्मे थे मेघनाद देसाई
मेघनाद देसाई का जन्म गुजरात में हुआ था, उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। उन्हें लॉर्ड की उपाधि भी मिली थी। वे लंदन के स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर थे, खासकर शिक्षा और राजनीति के क्षेत्र में उनका अमूल्य योगदान रहा है। उनके जाने से एक युग का अंत हो गया।देसाई ने साल 1992 में एलएसई में सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ ग्लोबल गवर्नेंस की स्थापना की।
1990 से 1995 तक वह एलएसई के डेवलपमेंट स्टडीज इंस्टीट्यूट के निदेशक और संस्थापक सदस्य रहे। उनका शोध 50 सालों से अधिक समय तक चला। देसाई ने निजी क्षेत्र और राज्य के विकास एवं मार्क्सवादी अर्थशास्त्र पर प्रभाव से संबंधित विषयों पर काम किया, जिसमें वैश्वीकरण और बाजार उदारीकरण शामिल हैं।
ब्रिटेन के शैक्षणिक और राजनीतिक क्षेत्रों में उनका बहुत प्रभाव रहा
देसाई ने बॉम्बे विश्वविद्यालय (अब मुंबई) से मास्टर किया था और इसके बाद उन्हें 1960 में यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिल्वेनिया में पढ़ने का मौका मिला। वहां से उन्होंने पीएचडी की। एलएसई के प्रोफेसर, लेबर राजनेता और नेशनल सेक्युलर सोसाइटी के मानद सहयोगी के रूप में उनका ब्रिटेन के शैक्षणिक और राजनीतिक क्षेत्रों में बहुत प्रभाव रहा।
उन्होंने 1970 के दशक की शुरुआत में मार्क्सवादी आर्थिक सिद्धांत पर लिखना शुरू किया और अपनी रुचि के क्षेत्रों को अर्थमिति, मौद्रिक अर्थशास्त्र और आर्थिक विकास तक बढ़ाया। उन्होंने LSE के वैश्विक शासन अध्ययन केंद्र की स्थापना की। एक विपुल एक लेखक के रूप में, उन्होंने आठ पुस्तकें लिखीं और 200 से अधिक अकादमिक पत्र प्रकाशित किए, साथ ही भारतीय और ब्रिटिश प्रकाशनों में स्तंभ भी लिखे। उनकी कुछ पुस्तकों में मार्क्सवादी आर्थिक सिद्धांत, मार्क्स का प्रतिशोध: पूंजीवाद का पुनरुत्थान और राज्यवादी समाजवाद की मृत्यु, भारत की पुनर्खोज और भगवद् गीता किसने लिखी, शामिल हैं।