प्रदेश में वन क्षेत्रों के अंदर आदिवासियों के आराध्य पूजा स्थल अब उपेक्षित नहीं रहेंगे। सरकार इन्हें देवलोक वन के रूप में विकसित करेगी। अभी इन स्थलों पर पक्के निर्माण को लेकर वन विभाग के मैदानी अधिकारी मना करते हैं, जबकि आदिवासी समाज के लोग वर्षों से इनके संरक्षण और संवर्धन की मांग करता रहा है। सीएम डॉ. मोहन यादव ने सीएम निवास पर वन विभाग के एसीएस अशोक बर्णवाल और वन बल प्रमुख वीएन अंबाड़े के साथ समीक्षा की। इसमें साफ कर दिया कि पूजा स्थलों को देवलोक के रूप में विकसित किया जाए।
सीएम ने कहा, वनांचल में ऐसे बहुत से क्षेत्र हैं जिन्हें स्थानीय समुदायों द्वारा सांस्कृतिक या धार्मिक मान्यताओं के आधार पर पारंपरिक रूप से संरक्षित किया जाता है। आस्था के ये क्षेत्र आध्यात्मिक महत्व के साथ जैवविविधता व सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखने के लिए भी खास है।
केंद्रीय कानून में निर्माण की अनुमति नहीं
वन क्षेत्रों के अंदर केंद्रीय वन कानूनों के तहत किसी भी तरह के निर्माण की अनुमति नहीं है। कोई भी राज्य इस रोक का उल्लंघन नहीं कर सकते। यही वजह है कि यदि टाइगर रिजर्व के अंदर रोड भी कच्चे बनाए जाते हैं। केंद्र व राज्य की परियोजनाओं के मामले में विशेष अनुमति लगती है जो केंद्रीय वन्यप्राणी व राज्य वन्यप्राणी बोर्ड देता है। अब यदि मुख्यमंत्री की निर्देशों व मंशा के अनुरूप देवलोक वन की पक्की संरचना तभी संभव है जब केंद्र व राज्य सहमत हों।
ये रास्ते निकाले जा सकते हैं
जिन आदिवासी पूजा स्थलों को देवलोक वन के रूप में विकसित किया जाना है, उन्हें तार फेंसिंग से कवर्ड करना, पहुंच के लिए ग्रेवल रोड बनाना, पेविंग ब्लॉक के जरिए विशेष पाथ-वे का निर्माण करना, जैसे काम शामिल होंगे।
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