संयुक्त राष्ट्र के ताज़ा सर्वेक्षण के अनुसार म्यांमार पहली बार अफ़ग़ानिस्तान को पीछे छोड़ते हुए अफ़ीम का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया है.
म्यांमार, अवैध ड्रग्स कारोबार के लिए बदनाम लाओस और थाईलैंड के बीच स्थित 'गोल्डन ट्रायंगल' क्षेत्र का हिस्सा है.
इस क्षेत्र में दशकों से अफ़ीम की खेती की जाती रही है, जो हेरोइन तैयार करने के लिए अहम सामग्री है.
गृहयुद्ध का बदतर होते जाना
ब्रिटिश शासन से साल 1948 में आज़ाद होने के बाद, म्यांमार की केंद्र सरकार जातीय अल्पसंख्यक गुटों के साथ संघर्ष से जूझती रही है. ये जातीय समूह सीमा से सटे पहाड़ी क्षेत्रों में रहते हैं.
साल 2021 में हुए सबसे ताज़ा सैन्य तख्तापलट ने तो देश को कई हिस्सों में बांट दिया.
सेना ने लोकतंत्र की बहाली की मांग कर रहे शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर हिंसक कार्रवाई की.
विपक्षी आंदोलनकारियों ने थाईलैंड, चीन और भारत से सटी सीमा पर उग्रवादियों के साथ हाथ मिलाया और कुछ प्रशिक्षण लेकर वापस देश की सेना के ख़िलाफ़ लड़ने लौटे.
इन आंदोलनकारियों ने मिलकर एक सशस्त्र समूह का गठन किया जिसे पीपुल्स डिफ़ेंस फोर्सेज़ (पीडीएफ़) के नाम से जाना जाता है.
तख्तापलट के बाद सत्ता से बेदखल किए गए निर्वाचित प्रशासन ने नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट (एनयूजी) का गठन किया. इस बीच कारेन, काचिन, कारेनी और चिन जैसे कुछ स्थापित जातीय समूहों ने खुद को एनयूजी के साथ जोड़ लिया.
एनयूजी की लड़ाकू इकाई को भी पीडीएफ़ कहा जाता है.
लेकिन थाईलैंड और चीन से सटे शैन राज्य में कई गुट इस अभियान का हिस्सा नहीं बने. ये इलाका दुनिया में अवैध मादक पदार्थों के उत्पादक के तौर पर जाना जाता है और यहां कानून व्यवस्था भी चरमराई हुई है.
अफ़ग़ानिस्तान में अफ़ीम पर पाबंदी
अप्रैल 2022 में तालिबान ने जबसे अफ़ीम की खेती पर पाबंदी लगाई, अफ़ग़ानिस्तान में इसका उत्पादन तेज़ी से घटा.
संयुक्त राष्ट्र का अफ़ग़ानिस्तान के अफ़ीम पर किया सर्वे बताता है कि देश में 2022 में 6200 टन अफ़ीम की खेती हुई थी. यह 2023 में 95 फ़ीसदी तक घटकर 333 टन रह गई है.
अफ़ीम के ऊंचे दाम
अफ़ग़ानिस्तान में खेती पर पाबंदी की वजह से अफ़ीम की कीमतों में उछाल आया.
अफ़ीम की खेती करने वाले किसानों को औसतन एक किलो के लिए 355 डॉलर रुपये दिए जाते हैं. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2022 की तुलना में ये कीमत 75 फ़ीसदी अधिक है.
इस वजह से और किसान अफ़ीम की खेती करने के प्रति आकर्षित हो रहे हैं. वह भी तब जब कोरोना महामारी और सैन्य शासकों के कुप्रबंधन की दोहरी मार के कारण म्यांमार की अर्थव्यवस्था नीचे गिरती जा रही है.
दुनियाभर में सप्लाई में आई कमी की वजह से भी गोल्डन ट्रायंगल ने अफ़ीम की मांग को बढ़ावा देने में सहयोग किया है.
किसानों के पास सीमित विकल्प
ऐसा नहीं कि म्यांमार में अफ़ीम की खेती को कम करने की कोशिश नहीं हुई. किसानों के मुनाफ़े के इरादे से चीनी, रबड़ और फलों की खेती को बढ़ावा दिया गया, लेकिन इन्हें उगाना अफ़ीम की तुलना में मुश्किल है.
इन वैकल्पिक पौधों को सुदूर इलाकों से मुख्य बाज़ारों तक लाना जटिल था. जबकि खरीददार अफ़ीम खरीदने के लिए उसके खेत तक पहुंच जाते हैं. इस तरह से किसानों का ट्रांसपोर्ट का खर्चा भी बच जाता है.
हालिया तख्तापलट के बाद से म्यांमार को बहुत कम विदेशी निवेश या अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहायता मिली है. इसकी वजह से किसानों के लिए आय के दूसरे ज़रिए तलाशना मुश्किल हो गया है.
इलाके में अराजकता का माहौल
गोल्डन ट्रायंगल क्षेत्र, दशकों से वैश्विक ट्रांसनेशनल अपराधों का गढ़ रहा है. यहां सिंथेटिक ड्रग्स का उत्पादन, अवैध हथियार का कारोबार, जुआ, मानव तस्करी और ऑनलाइन फ्रॉड जैसे सारे काम होते आए हैं.
सुदूर इलाके के इस पहाड़ी क्षेत्र की सीमाएं असुरक्षित हैं. यहां गश्ती नहीं होती, जिसकी वजह से अपराधियों के लिए कानून से बच पाना आसान हो जाता है.
उत्तरी शैन राज्य में हाल की झड़पों को चीन में ऑनलाइन धोखाधड़ी से जुड़े ठिकानों पर हुई कार्रवाई से जोड़ा गया. ये सभी ठिकाने म्यांमार के अंदर से चलाए जा रहे थे.
अफ़ीम के उत्पादन को जड़ से बंद करना तो म्यांमार के सामने मौजूद कई चुनौतियों का हिस्सा भर है. तख्तापलट के बाद से, देश में राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक, हर मोर्चे पर पतन होता दिख रहा है.
मौजूदा सैन्य शासन देश को नियंत्रित करने में ही संघर्ष कर रहा है. ऐसे में नशीले पदार्थों की समस्या से निपटना उनकी प्राथमिकताओं में शामिल होगा, इसकी संभावना कम ही है.
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