बिहार में इन दिनों वोटर लिस्ट के संशोधन की प्रक्रिया पर विशेष जोर दिया जा रहा है। यह कोई साधारण प्रक्रिया नहीं बल्कि राज्य के लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत करने की एक अनिवार्य और महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।
हर वर्ष हजारों युवा बिहार में 18 वर्ष की उम्र पूरी कर वोटिंग के अधिकार के पात्र बनते हैं। यदि वोटर लिस्ट को समय-समय पर अपडेट नहीं किया जाए, तो यह नया मतदाता वर्ग अपने सबसे बड़े लोकतांत्रिक अधिकार से वंचित रह सकता है। केवल नए नाम जोड़ना ही नहीं, बल्कि मृतकों के नाम हटाना, स्थानांतरण के कारण नए पते पर नाम दर्ज करना, दोहराव हटाना और अन्य त्रुटियों को सुधारना भी इसी प्रक्रिया का हिस्सा है।
राज्य में कई बार यह देखा गया है कि एक ही व्यक्ति के नाम अलग-अलग स्थानों पर दर्ज हो जाते हैं, या मृत व्यक्ति के नाम भी लिस्ट में बने रहते हैं। इससे चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह लग सकता है। वोटर लिस्ट में गड़बड़ी का सीधा असर चुनाव परिणामों पर पड़ सकता है, जिससे जनता के बीच अविश्वास की स्थिति पैदा हो सकती है।
बिहार की सामाजिक और राजनीतिक परिस्थिति को देखते हुए वोटर लिस्ट का सही और सटीक होना बेहद आवश्यक है। जातीय समीकरण, स्थानीय राजनीति, और सामाजिक संतुलन में वोटिंग एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि हर योग्य मतदाता का नाम सही स्थान पर दर्ज नहीं होगा तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया अधूरी मानी जाएगी।
चुनाव आयोग ने भी इसे गंभीरता से लेते हुए विशेष अभियान शुरू किया है, जिसमें घर-घर जाकर लोगों से उनके वोटर कार्ड की जानकारी ली जा रही है, और उन्हें अपडेट करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। नागरिकों से भी अपेक्षा की जाती है कि वे इस प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी करें और अपने दस्तावेज़ सही-सही दर्ज कराएं।
लोकतंत्र में मतदान केवल अधिकार नहीं बल्कि कर्तव्य भी है। और यह कर्तव्य तभी पूरा हो सकता है जब वोटर लिस्ट सटीक और अद्यतन हो। बिहार में वोटर लिस्ट का पुनरीक्षण इसलिए जरूरी है कि लोकतंत्र की जड़ें और अधिक गहरी और मजबूत हों, और हर व्यक्ति को यह विश्वास बना रहे कि उसका मत देश और राज्य के भविष्य को तय करने में अहम योगदान देता है।
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