


मध्य पूर्व एक बार फिर वैश्विक अस्थिरता का केंद्र बन गया है। तेल, धर्म, और अंतरराष्ट्रीय गठबंधनों की टकराहट ने इस क्षेत्र को बारूद के ढेर पर लाकर खड़ा कर दिया है। इस्राइल-गाज़ा संघर्ष, ईरान-अमेरिका तनाव और हालिया परमाणु ठिकानों पर हमलों ने हालात को युद्ध के मुहाने तक पहुंचा दिया है।
ऐतिहासिक परछाइयाँ
युद्धों से त्रस्त यह भूभाग पहले भी खाड़ी युद्ध, ईरान-इराक संघर्ष और ISIS जैसे संकटों का साक्षी रहा है। पश्चिमी हस्तक्षेपों और आंतरिक कट्टरवाद ने यहां स्थायित्व की हर कोशिश को कमजोर किया है।
शक्ति-संघर्ष और संसाधन
मध्य पूर्व के तेल भंडार वैश्विक अर्थव्यवस्था की धुरी हैं। अमेरिका, रूस और चीन जैसे देश यहां वर्चस्व की होड़ में हैं। ईरान का परमाणु एजेंडा, इस्राइल की आक्रामक सुरक्षा नीति और सऊदी-ईरानी क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा इस त्रिकोण को अत्यधिक संवेदनशील बना रही है।
इस्राइल-अमेरिका बनाम ईरान-रूस ध्रुवीकरण
इस्राइल और अमेरिका का गठजोड़ जहां सैन्य और कूटनीतिक रूप से बेहद मजबूत है, वहीं उसके विरोध में ईरान, रूस और चीन जैसे देशों का परोक्ष समर्थन एक नए शीत युद्ध जैसी स्थिति खड़ी कर रहा है। हमास, हिज़्बुल्ला और यमन के हौथी गुटों की सक्रियता इस टकराव को और जटिल बना रही है।
परमाणु हमले और युद्ध की आहट
ईरान की परमाणु सुविधाओं पर इस्राइल-अमेरिका के हमले ने स्थिति को निर्णायक बना दिया है। बदले की रणनीति के तहत ईरानी समर्थक गुटों की आक्रामकता और रूस-चीन की प्रतिक्रिया, इस टकराव को व्यापक युद्ध में बदल सकती है।
संभावित वैश्विक प्रभाव
तेल आपूर्ति में बाधा, हथियारों की होड़, आर्थिक मंदी और कट्टरपंथ का उभार—यदि यह युद्ध फैला, तो केवल मध्य पूर्व नहीं, पूरी दुनिया इसकी चपेट में आ सकती है।
मध्य पूर्व अब केवल क्षेत्रीय संघर्ष का मंच नहीं, बल्कि वैश्विक युद्ध की संभावित प्रयोगशाला बनता जा रहा है। यदि कूटनीति विफल हुई, तो चौथा विश्व युद्ध इतिहास नहीं, भविष्य बन सकता है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अब निर्णायक हस्तक्षेप करना होगा—वरना मानवता एक और विनाश की ओर बढ़ेगी।