


गर्मी का मौसम आते ही हम सभी को पसीना, चिड़चिड़ापन और थकावट जैसे कई बदलाव महसूस होते हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इनका असर सिर्फ आपकी त्वचा या शरीर पर नहीं, बल्कि आपके हार्मोन यानी शरीर के अंदर चल रहे केमिकल संतुलन पर भी होता है? तेज़ गर्मी आपके हार्मोन को बिगाड़ सकती है, जिससे आपकी नींद, मूड, एनर्जी लेवल और यहां तक कि पीरियड्स भी प्रभावित हो सकते हैं.
गर्मी और तनाव
गर्मियों में शरीर को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है खुद को ठंडा रखने के लिए. ऐसे में बॉडी इसे एक स्ट्रेस की तरह लेती है और कोर्टिसोल नाम का स्ट्रेस हार्मोन बढ़ जाता है. जब ये ज्यादा समय तक बना रहता है, तो ये बाकी हार्मोन का संतुलन बिगाड़ देता है: महिलाओं में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन असंतुलित हो सकते हैं, जिससे पीरियड्स अनियमित हो सकते हैं. पीसीओएस वाले लोगों में टेस्टोस्टेरोन स्तर बदल सकता है. थायरॉइड हार्मोन कम बन सकता है, जिससे मेटाबॉलिज्म और एनर्जी लेवल गिर जाता है.
नींद की कमी से हार्मोनल गड़बड़ी
गर्मी में पसीने और बेचैनी के कारण नींद अच्छी नहीं आती. इससे मेलाटोनिन (नींद का हार्मोन) की मात्रा कम हो जाती है और नींद की कमी के कई कारण हैं.इंसुलिन की संवेदनशीलता घटती है, जिससे ब्लड शुगर कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है. ओवुलेशन गड़बड़ा सकता है और मूड स्विंग्स बढ़ जाते हैं. भूख ज्यादा लगती है, थकावट रहती है और चिंता भी बढ़ सकती है.
डिहाइड्रेशन यानी पानी की कमी
गर्मी में पसीना ज्यादा आता है, जिससे शरीर का पानी और जरूरी मिनरल्स निकल जाते हैं. यहां तक कि हल्का डिहाइड्रेशन भी हो सकती है. एड्रिनल ग्लैंड की कार्यक्षमता घटा सकता है, जिससे स्ट्रेस संभालना मुश्किल हो जाता है. थायरॉइड की कार्यक्षमता कम हो सकती है, जिससे थकान और मानसिक सुस्ती आती है. इसलिए सिर्फ पानी ही नहीं, नारियल पानी, फल, और ओआरएस जैसे नेचुरल सोर्स से इलेक्ट्रोलाइट्स लेना भी जरूरी है.
पीरियड्स में बदलाव
गर्मी में कई महिलाओं को पीरियड्स देरी से या अनियमित आने की शिकायत होती है. इसके पीछे कारण हो सकते हैं. गर्मी से शरीर में स्ट्रेस और थकावट बढ़ना स्वभाविक हैं. सोने-जागने और खाने-पीने की दिनचर्या का बिगड़ना भी हो सकता है. यात्रा या बार-बार बाहर का खाना खाने से परेशानी बढ़ सकती है.
कम फिजिकल एक्टिविटी
गर्मी के कारण जब हम चलना-फिरना कम कर देते हैं, तो इसका असर भी हार्मोन पर पड़ता है. शरीर में इंसुलिन का असर घटता है, जिससे मोटापा और डायबिटीज़ का खतरा बढ़ता है. एस्ट्रोजन का मेटाबॉलिज्म बिगड़ता है. सेरोटोनिन जैसे मूड को ठीक रखने वाले हार्मोन की मात्रा घट सकती है.