


गर्मियों का मौसम आते ही पारा चढ़ता है और उसके साथ ही कई लोगों के मूड में भी बदलाव आना शुरू हो जाता है। आमतौर पर लोग मानते हैं कि सर्दियों में ही लोग डिप्रेशन या लो फील करते हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि तेज़ गर्मी भी मानसिक स्थिति पर गहरा असर डाल सकती है।
जब तापमान लगातार बढ़ता है, तो शरीर और दिमाग दोनों पर दबाव पड़ता है। गर्मी में नींद का डिस्टर्ब होना, पानी की कमी, और लगातार पसीना आना शरीर को थका देता है। लेकिन असल असर दिमाग पर पड़ता है – मूड स्विंग्स, चिड़चिड़ापन और मन का उदास रहना इसकी सामान्य निशानियाँ हैं। इस स्थिति को 'समर सेडनेस' या ‘समर सेड’ कहते हैं। ये कोई बीमारी नहीं, बल्कि एक तरह की मानसिक प्रतिक्रिया है जो तेज़ गर्मी और बाहरी वातावरण से जुड़ी होती है।
तेज़ गर्मी क्यों बिगाड़ती है मूड?
गर्मियों में दिन लंबे और रातें छोटी हो जाती हैं। सूरज की तेज़ रोशनी और तापमान का बढ़ना नींद के चक्र को प्रभावित करता है। इससे नींद पूरी नहीं हो पाती और व्यक्ति थका हुआ महसूस करता है। साथ ही शरीर का तापमान नियंत्रित रखने के लिए दिमाग को अधिक मेहनत करनी पड़ती है, जिससे मूड पर असर पड़ता है। यही कारण है कि गर्मी में चिड़चिड़ापन, थकावट और सुस्ती ज़्यादा देखने को मिलती है।
कौन-कौन होते हैं ज़्यादा प्रभावित?
हर किसी को गर्मी का असर एक जैसा नहीं होता। लेकिन जो लोग पहले से तनाव, एंग्जायटी या डिप्रेशन से जूझ रहे होते हैं, उनके लिए यह मौसम और कठिन हो सकता है। इसके अलावा बुजुर्ग, बच्चे और वे लोग जो ज्यादा धूप में रहते हैं, उनमें ‘समर सेड’ के लक्षण अधिक देखे जाते हैं।
बचने के आसान उपाय क्या हैं?
समर सेड से बचने के लिए लाइफस्टाइल में छोटे-छोटे बदलाव काफी असरदार हो सकते हैं। दिन में पर्याप्त पानी पीना, हल्का और संतुलित भोजन करना, धूप में कम से कम निकलना, और सुबह या शाम की सैर जैसी आदतें मूड को बेहतर बना सकती हैं। इसके अलावा, कमरे को ठंडा और शांत रखना और नींद का पूरा ध्यान रखना भी जरूरी है।