


उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में इस वर्ष देवशयनी एकादशी के पावन अवसर पर बाबा महाकाल का ऐसा अलौकिक श्रृंगार हुआ, जिसने हर शिवभक्त के हृदय को भावविभोर कर दिया। सुबह भस्म आरती के दौरान बाबा को त्रिपुंड तिलक, मोगरे की सुगंधित माला और दिव्य वस्त्रों से सजाया गया। पूरा मंदिर परिसर शिवमय वातावरण से गूंज उठा।
देवशयनी एकादशी, जिसे हरिशयनी एकादशी भी कहा जाता है, वैष्णव और शैव दोनों परंपराओं में विशेष महत्व रखती है। इस दिन भगवान विष्णु चार मासों के योगनिद्रा में प्रवेश करते हैं, और शिव भक्तों के लिए भी यह दिन विशेष पूजन व साधना का अवसर लेकर आता है। उज्जैन के ज्योतिर्लिंग श्री महाकालेश्वर का श्रृंगार इस विशेष दिन की आध्यात्मिक ऊर्जाओं को और भी प्रभावशाली बना देता है।
श्रृंगार में इस बार विशेष आकर्षण रहा बाबा का त्रिपुंड, जो शिव के त्रिगुणात्मक स्वरूप — सत, रज और तम — का प्रतीक है। उनके मस्तक पर भस्म से खींचा गया यह त्रिपुंड ध्यान, ज्ञान और वैराग्य का संदेश दे रहा था। साथ ही मोगरे के सफेद, सुगंधित पुष्पों की मालाएं उनके गले में विराजमान थीं, जो शिव की सहजता और शुद्धता का प्रतीक बनीं।
श्रृंगार दर्शन के लिए मंदिर में हजारों श्रद्धालु एकत्र हुए। भस्म आरती, रुद्राभिषेक और विशेष पूजन अनुष्ठान पूरे विधि-विधान से सम्पन्न हुए। भक्तों ने दर्शन कर अपने जीवन को धन्य माना और महाकाल के इस अलौकिक स्वरूप के दर्शन को आत्मिक अनुभव की तरह संजो लिया।
यह अद्भुत दृश्य केवल श्रृंगार का नहीं, बल्कि भक्ति और ब्रह्मत्व के संगम का प्रतीक था — जहां शिव का सौंदर्य, वैराग्य और शक्ति एक साथ प्रकट हुए। त्रिपुंड और मोगरे की माला के माध्यम से सजे बाबा महाकाल ने जैसे सम्पूर्ण सृष्टि को यह संदेश दिया कि अध्यात्म, शांति और शिवत्व, इन तीनों के समन्वय से ही जीवन में सच्ची दिव्यता संभव है।