


पुरानी हिंदी फिल्मों में सावन केवल एक ऋतु नहीं, बल्कि आत्मा के भीगने और ईश्वर से जुड़ने का प्रतीक रहा है। वर्षा की फुहारें जहां मन को ठंडक देती हैं, वहीं भीतर छिपी भक्ति की धारा को भी जागृत करती हैं। इसका प्रमाण हमें कई क्लासिक फिल्मों के गीतों में मिलता है, जो केवल प्रेम या विरह नहीं, बल्कि आध्यात्मिक अनुभूति कराते हैं।
उदाहरण के लिए, फ़िल्म "मिलन" (1967) का गीत "सावन का महीना पवन करे शोर" केवल प्रकृति के सौंदर्य का वर्णन नहीं करता, बल्कि जीवन के अनित्यत्व और परमात्मा की उपस्थिति का भी बोध कराता है। गीत में प्रेम के साथ-साथ वह अदृश्य शक्ति महसूस होती है, जो हर पल हमारे चारों ओर है।
इसी प्रकार फ़िल्म "हम दोनो" (1961) का प्रसिद्ध भजन "अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम" सावन की ऋतु में विशेष रूप से गाया जाता है, जब वर्षा के जल में हर धर्म, हर जाति एक हो जाते हैं। वर्षा की बूँदों की तरह यह गीत भी बताता है कि हम सब एक ही परम सत्ता के अंश हैं।
पुरानी फिल्मों में सावन के दृश्य केवल दृश्य-संयोजन नहीं थे, वे दर्शकों के भीतर छिपे ईश्वर प्रेम को भी जगाते थे। वर्षा, पवन, और हरियाली के माध्यम से जीवन में शांति, समर्पण और अध्यात्म का संदेश देना ही इन फिल्मों का मूल उद्देश्य रहा है। आज भी जब सावन आता है, तो ये गीत हमारे हृदय में वही भाव जगा देते हैं—एक शाश्वत ईश्वर की उपस्थिति का मधुर एहसास।