


ड्रोन के बाद अब कॉकरोच भी युद्ध के हथियार बनने वाले हैं। जी हाँ, यह सुनकर अजीब लग सकता है, लेकिन जर्मनी ने एक अनोखी योजना बनाई है जिसके तहत जासूसी करने वाले कॉकरोच और मानव रहित AI-आधारित हथियार तैयार किए जा रहे हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध और भारत के ऑपरेशन सिंदूर जैसे अभियानों में आत्मघाती ड्रोनों के इस्तेमाल ने साबित कर दिया है कि तकनीक कैसे युद्ध के मैदान को बदल रही है, और अब रक्षा क्षेत्र की कंपनियाँ एक कदम आगे बढ़ रही हैं।
रूस-यूक्रेन युद्ध ने खोली यूरोप की आँखें
रूस-यूक्रेन युद्ध को तीन साल से ज़्यादा हो गए हैं, और इसने यूरोप को यह समझा दिया है कि अपनी सुरक्षा को केवल अमेरिका और NATO के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। इसी वजह से द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप में एक बार फिर हथियारों के विकास की होड़ शुरू हो गई है, जिसमें जर्मनी सबसे ज़्यादा खर्च कर रहा है।
जर्मनी में सैन्य विकेंद्रीकरण और नई रणनीति
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, जर्मनी को अमेरिका ने सुरक्षा की गारंटी दी थी, और उसे सीमित सैन्य संसाधन जुटाने की ही अनुमति थी। इस वजह से जर्मनी ने अपने रक्षा बजट में कटौती करके दूसरी जगहों पर खर्च करना शुरू कर दिया। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध ने जर्मनी को यह समझा दिया है कि अपनी सुरक्षा को पूरी तरह से अमेरिका के हाथों में छोड़नाखतरे से खाली नहीं हो सकता।
जर्मनी के नए और खतरनाक हथियार
जर्मन सरकार ने अब देश के सैन्य स्टार्टअप्स को फंडिंग देना शुरू कर दिया है। इसका नतीजा यह है कि जर्मनी अब जासूसी करने वाले कॉकरोच, मानव रहित पनडुब्बी और AI-आधारित टैंक का निर्माण ज़ोरों पर कर रहा है।
साइबर इनोवेशन हब के प्रमुख स्वेन वीज़ेनेगर ने बताया कि यूक्रेन युद्ध के बाद रक्षा क्षेत्र में काम करने को लेकर समाज में जो हिचक थी, वह अब खत्म हो रही है। अब बड़ी संख्या में लोग रक्षा टेक्नोलॉजी के नए आइडिया लेकर आ रहेहैं। इसी कड़ी में, Swarm Biotactics नाम की कंपनी साइबोर्ग कॉकरोच बना रही है। इसका मतलब है कि असली तिलचट्टों को छोटे बैकपैक पहनाए जा रहे हैं जिन पर कैमरे लगे होंगे। ये कॉकरोच दुश्मन के इलाके में जाकर डेटा इकट्ठा कर सकेंगे, और उनके मूवमेंट को इलेक्ट्रिक सिग्नल से कंट्रोल किया जा सकेगा।