कामाख्या मंदिर को तंत्र साधना का हृदय-स्थल माना जाता है। यहाँ शास्त्रों के अनुसार गुप्त विद्याओं, शक्ति उपासना और विशेष अनुष्ठानों का अभ्यास प्राचीन समय से होता आया है। गुरु-परंपरा के संरक्षण में यहाँ की साधनाएँ बाहरी दिखावे से दूर, अंतर्मन के जागरण पर केंद्रित रहती हैं।
देवी की दिव्य उपस्थिति — योनिभाग का प्रतीक
यह माना जाता है कि सती के शरीर के 51 अंगों में से देवी का योनिभाग यहीं विराजमान है। गर्भगृह में किसी मूर्ति की स्थापना नहीं है, बल्कि एक प्राकृतिक चट्टान सतत जलधारा के साथ शक्ति-तत्त्व का प्रतीक मानी जाती है। यह अद्वितीय स्वरूप ही कामाख्या को अन्य शक्तिपीठों से अलग पहचान देता है।
रहस्य, भक्ति और ऊर्जा का संगम
कामाख्या केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र है। यहाँ की वायु में भक्ति, तंत्र परंपरा और ब्रह्मांडीय चेतना का अप्रतिम संयोग महसूस किया जा सकता है। साधकों को यहाँ ध्यान और जप के दौरान गहन आंतरिक शांति और शक्ति-स्पंदन का अनुभव होता है।
अम्बुवाची मेला — शक्ति के जागरण का उत्सव
हर वर्ष होने वाला अम्बुवाची मेला कामाख्या की पहचान है। मान्यता है कि इन दिनों देवी का रजस्वला काल होता है और मंदिर के पट बंद रहते हैं। पट खुलने पर शक्ति का नवीन जागरण माना जाता है, और हजारों साधक-श्रद्धालु इस दिव्य क्षण के साक्षी बनते हैं।
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