योगी आदित्यनाथ ने अपने खुले पत्र में युवाओं को प्रेरित करते हुए कहा कि आने वाले वर्ष में हर युवा अपने आसपास के कम से कम पाँच बच्चों को डिजिटल साक्षरता और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बुनियादी जानकारी दे। उनका कहना है कि यदि हर सप्ताह केवल एक घंटा ज्ञानदान के लिए दिया जाए, तो यह न केवल तकनीकी जागरूकता बढ़ाएगा बल्कि आने वाली पीढ़ी को आत्मनिर्भर भी बनाएगा। यह पहल राज्य को निवेश और नवाचार का मजबूत केंद्र बनाने की दिशा में एक सशक्त कदम मानी जा रही है।
शास्त्रों की वाणी: ‘विद्या दानं परं दानं’
मुख्यमंत्री ने इस आधुनिक मुहिम को भारतीय आध्यात्मिक परंपरा से जोड़ा। हिंदू धर्मग्रंथों में विद्या दान को सर्वोच्च दान बताया गया है—ऐसा दान जो कभी समाप्त नहीं होता और निरंतर बढ़ता रहता है। योगी आदित्यनाथ स्वयं एक सन्यासी और पीठाधीश्वर होने के नाते ज्ञान के इस सांस्कृतिक महत्व को गहराई से समझते हैं। उनका मानना है कि ज्ञानदान समाज की आत्मा को मजबूत बनाता है और राष्ट्र के नैतिक व बौद्धिक विकास का मूलाधार है।
AI युग में पुनर्जीवित होती गुरु–शिष्य परंपरा
गुरु-शिष्य परंपरा भारतीय सभ्यता की आत्मा रही है। इसी धारा को आगे बढ़ाते हुए योगी ने युवाओं से आह्वान किया कि वे स्वयं ‘गुरु’ बनें और बच्चों को तकनीक, नैतिकता और जिम्मेदारी का पाठ पढ़ाएं। इससे न केवल डिजिटल कौशल विकसित होगा, बल्कि बच्चों में अनुशासन, कर्तव्यबोध और सामाजिक चेतना भी जागृत होगी। इस दृष्टिकोण से शिक्षा केवल ज्ञान नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण का साधन बन जाती है।
AI और अध्यात्म—नए भारत की दो धाराएँ
योगी आदित्यनाथ का संदेश केवल तकनीकी ज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत को आर्थिक और आध्यात्मिक दोनों स्तरों पर सशक्त बनाने की दृष्टि प्रस्तुत करता है। उनका मानना है कि यदि AI जैसी आधुनिक तकनीकें भारतीय मूल्यों के साथ जुड़ जाएँ, तो भारत विश्व पटल पर ‘विज्ञान और संस्कार’ दोनों का मार्गदर्शक बन सकता है। युवाओं का ज्ञानदान इस दिशा में वह चिंगारी है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए उज्ज्वल भविष्य प्रज्वलित कर सकती है।
Comments (0)