SBI इंदौर में कार्यरत 8 दैनिक वेतनभोगियों की 15 साल की लंबी कानूनी लड़ाई आखिरकार रंग लाई। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि इन कर्मचारियों को SBI में दोबारा नियुक्त किया जाए। साथ ही बैंक को उन्हें 50 प्रतिशत बकाया वेतन भी देना होगा। लेबर कोर्ट से शुरु हुआ यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए अमानुल्लाह व जस्टिस एसवीएन भट्टी की खंडपीठ ने SBI की विशेष अनुमति याचिका निरस्त कर दैवेभो कर्मियों को राहत दी। मामले को लेकर जबलपुर के रवि यादव, उमेश सैनी, मुकेश सुमन, राजकुमार सेन, मुकेश बुरमन, राम नारायण पाठक, रविन्द्र यादव और सुनील नाहर ने लंबी लड़ाई लड़ी।
2010 का है मामला
यह मामला तब शुरु हुआ जब 23 जुलाई 2010 को स्टेट बैंक ऑफ इंदौर का SBI में विलय किया गया। विलय के बाद बैंक ने स्थायी कर्मचारियों को तो सेवा में लिया, लेकिन इन दैवेभो कर्मचारियों की सेवाएं बिना किसी पूर्व सूचना या वैधानिक प्रक्रिया के समाप्त कर दी। यह निर्णय औद्योगिक विवाद अधिनियम और अधिसूचना दोनों का उल्लंघन था।
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