पाकिस्तान और ईरान पहले कट्टर दोस्त हुआ करते थे। दोनों ही मुस्लिम देश हैं और इनमें भाई-भाई का रिश्ता था। यहां तक कि ईरान ने भारत-पाकिस्तान की जंग के दौरान 1965 और 71 में पाकिस्तान की पूरी मदद की थी। तमाम अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी ईरान भारत के खिलाफ और पाकिस्तान के साथ खड़ा दिखता था। मगर आखिर ऐसा क्या हो गया कि कुछ ही वर्षों में दोनों देश एक दूसरे के जानी-दुश्मन हो बैठे? पाकिस्तान पर ईरान की एयर स्ट्राइक के बाद दुनिया इन दोनों देशों के रिश्तों में आए इस उतार-चढ़ाव की वजह जानने को आतुर है। ...तो आइए आपको बताते हैं कि अचानक कैसे और किस वजह से इन दोनों देशों के संबंध बिगड़ गए, किस कारण से ईरान और पाकिस्तान एक दूसरे के दुश्मन बन बैठे?
पाकिस्तान और ईरान की दोस्ती में दरार आना तब शुरू हुई जब 1979 में ईरान शिया मुस्लिम वाला देश बन गया। जबकि पाकिस्तान की ज्यादातर आबादी सुन्नी मुसलमानों की है। दोनों मुस्लिम धर्म से जुड़े होने के बावजूद इनकी मान्यताओं और विचारधारा में जमीन-आसमान का फर्क है। आमतौर पर सुन्नी कट्टरपंथियों में आते हैं, जबकि शिया मुस्लिम नरमपंथी कहे जाते हैं। शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच का असली विवाद सदियों पहले मुस्लिम धर्म के प्रवर्तक पैगम्बर मोहम्मद की शिया मुसलमानों द्वारा हत्या कर दिए जाने के बाद शुरू हुआ। तब से दोनों में दुश्मनी सी रहने लगी।
1947 से पाकिस्तान का पक्का दोस्त था ईरान
ईरान और पाकिस्तान की दोस्ती पाक की आजादी के साथ जुड़ी है। भारत और पाकिस्तान जब 14 अगस्त 1947 को अलग हुए तो पाकिस्तान को मुस्लिम देश के तौर पर मान्यता देने वाला ईरान पहला देश बना था। ईरान और पाकिस्तान के बीच भाई-भाई जैसा रिश्ता था। दोनों देश भौगोलिक रूप से भी आपस में काफी गहराई से जुड़े हैं और 990 किलोमीटर की सीमा साझा करते हैं। वर्ष 1947 के बाद ईरान-पाकिस्तान के बीच कई मैत्रीय संधियां हुई। दोनों में दोस्ती इतनी प्रगाढ़ हो गई कि वह भारत के खिलाफ मिलकर एक जुट हो जाया करते थे।
ईरान ने भारत के खिलाफ जंग में पाकिस्तान को दिए थे बमवर्षक विमान
पाकिस्तान और ईरान की दोस्ती का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जब 1965 में भारत-पाकिस्तान के बीच जंग हुई तो ईरान ने पाकिस्तान के कई बमवर्षक विमान और युद्धक सामग्रियां दी थी। इसी तरह 1971 के भारत-पाक युद्ध में भी ईरान ने पाकिस्तान को पूर्ण राजनयिक और सैन्य समर्थन दिया। इतना ही नहीं, इसके बाद बलूचों ने जब पाकिस्तान के खिलाफ विद्रोह छेड़ा तो भी ईरान ने अपने दोस्त की इस विरोध को दबाने में पूरी मदद की। बदले में पाकिस्तान के परमाणु वैज्ञानिकों ने ईरान में परमाणु कार्यक्रमों को विकसित करने में अपना योगदान दिया।
1979 से बदलने लगे रिश्ते
मगर कुछ ही वर्षों बाद एक ऐसा दौर आया, जब ईरान और पाकिस्तान के बीच दूरियां बढ़ने लगीं। यह वक्त 1979 का था। ईरान में इस्लामिक क्रांति के बाद दोनों देशों के संबंधों में उतार-चढ़ाव आना शुरू हो गया। लाहौर में ईरानी राजनयिक सादिक गंजी की हत्या और फिर वर्ष 1990 के दौरान पाकिस्तान ईरानी वायुसेना के कैडेटों की निर्मम हत्या से दोनों देशों की दुश्मनी और गहरी हो गई। अफगानिस्तान में पाकिस्तान और ईरान की एक दूसरे के विरुद्ध नीतियों ने भी इस विरोध की खाईं को खूब बढ़ाया। पाकिस्तान हमेशा तालिबानी आतंकियों का समर्थक रहा। जबकि ईरान वहां की पूर्व सरकार का पक्ष लेता रहा। 2014 में ईरान के पांच सैनिकों को पाकिस्तान के आतंकी समूह जैश-उल-अदल ने अपहरण कर लिया। इसके बाद ईरान ने सैन्य कार्रवाई की चेतावनी दी थी। बाद में 4 रक्षकों को पाकिस्तान ने वापस कर दिया और 1 को मार दिया। इससे विवाद बढ़ता गया।
भारत-ईरान संबंध
पाकिस्तान और ईरान के साथ संबंध बिगड़ने के बाद भारत और ईरान के रिश्ते नए दौर में बदलने शुरू हो गए। भारत-ईरान के रिश्ते में सबसे बड़ी मजबूती तब से आनी शुरू हुई जब वर्ष 2021 में पूर्व पीएम अटल बिहारी बाजपेई ने ईरान की यात्रा की और कई अहम समझौते किए। अटल की तर्ज पर चलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी वर्ष 2016 में ईरान दौरे पर गए। इस दौरान दोनों देशों के बीच विभिन्न क्षेत्रों में 12 से अधिक अहम समझौते हुए। फिर ईरान के तत्कालीन राष्ट्रपति रूहानी 2018 में भारत आए। इससे दोनों देशों के रिश्ते प्रगाढ़ होते गए। भारत-ईरान के संबंधों में उस वक्त और मजबूती आनी शुरू हुई जब समरकंद में पीएम मोदी और ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की वर्ष 2022 में पहली बार द्विपक्षीय मुलाकात हुई और बहुउद्देश्यीय समझौते हुए।
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